अदालत ने वन्यजीव संरक्षण कानून संबंधी मामलों की सुनवायी जल्द पूरी किये जाने पर जोर दिया

बेंगलुरु, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामलों में शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता पर बल देने के साथ ही अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने में होने वाली लंबी देरी पर चिंता व्यक्त की है। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने अब्दुल रहमान और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिन पर 2008 में बांदीपुर जंगल में एक चित्तीदार हिरण को मारने का आरोप है। सोलह साल बीत जाने के बावजूद आरोपियों के खिलाफ मुकदमा अभी भी जारी है। अदालत ने लंबी कार्यवाही की आलोचना करते हुए कहा इतना लंबा समय क्यों वन अपराध का निपटारा करने में आपको 16 साल क्यों लगते हैं यह सही नहीं है कि आप 2008 में हिरण को मारने के लिए वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज करते हैं और 2024 में भी इसकी सुनवाई जारी है। यह क्या है पीठ ने देरी के लिए आरोपियों द्वारा अदालत में पेश न होने को जिम्मेदार ठहराया जिसके कारण बार-बार स्थगन हुआ। रहमान और उसके सह-आरोपियों ने कार्यवाही रद्द करने का अनुरोध किया था जिसमें दलील दी गई थी कि वे दोहरे संकट का सामना कर रहे हैं क्योंकि केरल में उनके खिलाफ मांस और बिना लाइसेंस के हथियारों के अवैध कब्जे से संबंधित एक अलग मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि हिरण को कर्नाटक में मारा गया था जहां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू होता है। केरल में 35 किलोग्राम हिरण के मांस और हथियारों की जब्ती से जुड़ा मामला शस्त्र अधिनियम के तहत आता है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को कोई राहत देने से इनकार कर दिया और मुकदमे से बचने के उनके बार-बार प्रयासों का हवाला दिया और निचली अदालत को 12 सप्ताह के भीतर मामले को पूरा करने का आदेश दिया।क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडियाफोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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