नयी दिल्ली, पूर्वोत्तर राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 50 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण आबादी खाना पकाने के लिए लकड़ी और मिश्रित बायोमास जैसे पारंपरिक ठोस ईंधन का उपयोग करती है, जिससे प्रदूषण होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के एक अध्ययन में यह कहा गया है।
‘इंस्टीट्यूट नेशनल डी रेचेर्चे एट डी सेक्यूरिटे’ (आईएनआरएस), फ्रांस और ‘नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी’ (सीएसआईआर-एनपीएल), भारत के सहयोग से यह अध्ययन किया गया, जिसका उद्देश्य एलपीजी की तुलना में खाना पकाने के लिए बायोमास ईंधन के उपयोग से जुड़ी गंभीरता और इससे होने वाली बीमारी का आकलन करना था।
अध्ययन से पता चला कि जलाऊ लकड़ी या बायोमास का उपयोग करने वाली रसोई में हानिकारक एयरोसोल का जोखिम एलपीजी का उपयोग करने वाली रसोई की तुलना में दो से 19 गुना अधिक था।
जलाऊ लकड़ी और मिश्रित बायोमास का उपयोग करने वाली आबादी के एक हिस्से को एलपीजी उपयोगकर्ताओं की तुलना में 2-57 गुना अधिक बीमारी का सामना करना पड़ता है।
स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के सहायक प्रोफेसर सायंतन सरकार ने कहा “प्रगति के बावजूद, पूर्वोत्तर भारत के तीन राज्यों (असम, अरुणाचल, मेघालय) में 50 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण आबादी खाना पकाने के लिए लकड़ी और मिश्रित बायोमास जैसे पारंपरिक ठोस ईंधन का उपयोग करती है, जिससे रसोई की हवा में महत्वपूर्ण प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।”
क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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