कश्मीर का सदियों पुराना ‘नमदा’ हस्तशिल्प अपना खोया हुआ गौरव फिर से हासिल कर रहा

श्रीनगर, कश्मीर का तकरीबन विलुप्त हो चुका पारंपरिक ऊनी गलीचा ‘नमदा’ हस्तशिल्प न सिर्फ स्थानीय लोगों के बैठकखाना (ड्राइंग रूम) में वापसी कर रहा है, बल्कि अपना खोया हुआ अंतरराष्ट्रीय गौरव भी फिर से हासिल कर रहा है।कभी यह कश्मीर से सबसे ज्यादा निर्यात किए जाने वाला हस्तशिल्प हुआ करता था, लेकिन कच्चे माल की गुणवत्ता में कमी और कला को आगे बढ़ाने के लिए नये दस्तकार नहीं मिल पाने के चलते ‘नमदा’ का उत्पादन कम होने लगा।  हस्तशिल्प विभाग के निदेशक महमूद अहमद शाह ने पीटीआई-भाषा से कहा, “ ‘नमदा’ से पश्मीना और गलीचा की तुलना में ज्यादा राजस्व प्राप्त होता था। इस कला को पुनर्जीवित करने के क्रम में, हस्तशिल्प विभाग ने 11 प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए, जहां नौजवानों को ‘नमदा’ बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।”

             उन्होंने कहा, “उत्पादन बढ़ाने के लिए आईआईटी, रुड़की ने एक छोटी मशीन बनाई है। इन मशीनों का उपयोग किया जा रहा है।” शाह ने यह भी बताया कि ‘बाग-ए-अली मर्दान खान इंस्टीट्यूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी’ ने कच्चे माल की जरूरतों को पूरा करने में मदद की है। संस्थान में ऊन की धुनाई की जाती है और फिर इसे प्रशिक्षण, उत्पादन केंद्रों और दस्तकारों को भेजा जाता है।  शाह ने कहा कि ‘नमदा’ शिल्प के पुनरुद्धार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्वीट ने दस्तकारों को प्रोत्साहित किया है।

             उन्होंने कहा, “ नमदा पर प्रधानमंत्री मोदी का ट्वीट हमारे लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है और वह अपने परिधान के जरिए लगातार कश्मीर की कला को बढ़ावा दे रहे हैं। यह दस्तकारों और हस्तशिल्प के लिए बेहद प्रेरणादायक है।”  ‘नमदा’ दस्तकार अमीना ने बताया कि वह पहले कश्मीर की पारंपरिक कला से वाकिफ नहीं थी। उन्होंने कहा, “ यह कश्मीर की एक पारंपरिक कला है। हम दस्तकार के तौर पर इस विरासत को बनाये रखना चाहते हैं।”  अन्य कारीगर कौसर ने कहा कि ‘नमदा’ निर्मित करने से रोज़गार के मौके भी बढ़ेंगे।

             प्रशिक्षक इमरान अहमद शाह ने बताया, “मीर बेहरी केंद्र में 20 युवतियों को ‘नमदा’ बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है, जो इन महिलाओं के लिए रोजगार का सृजन करने में भी मदद करता है तथा अगर हम इस कला को पुनर्जीवित करने के लिए और ज्यादा कोशिश करते हैं, तो इससे कश्मीर के नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर सृजति होंगे।”   उन्होंने कहा, “मेरे पिता ‘नमदा’ के दस्तकार थे। 1970 के दशक में इसका निर्यात करोड़ों रुपये का था, लेकिन 1990 के  महमूद अहमद शाह ने बताया कि ऊनी नमदा के अलावा, पश्मीना नमदा भी कश्मीर के दस्तकारों द्वारा बनाया जाता है, जिसे इटली निर्यात किया जाता है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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