कोविल्हा, ऐसे पुरुष, जिन्होंने शादी नहीं की है या जो जीवनसाथी से अलग हो चुके हैं या फिर उन्हें गंवा चुके हैं, वे भी ‘किराये की कोख’ (सरोगेसी) से संतान सुख हासिल कर सकते हैं। हालांकि, किसी अकेले पिता के लिए सरोगेसी से औलाद पाने की प्रक्रिया आसान नहीं होती। ऐसे पुरुषों को न सिर्फ सरोगेसी से जुड़े विभिन्न कानूनों, बल्कि इसके भारी-भरकम खर्च और भ्रूण की उपलब्धता सहित अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, हाल के दशकों में लोगों की सोच में आए व्यापक बदलाव के बावजूद अधिकांश समुदायों में, विशेष रूप से अधिक रूढ़िवादी और धार्मिक समुदायों में, सरोगेसी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बरकरार है।
बहरहाल, विभिन्न अध्ययन दर्शाते हैं कि किसी अकेले पिता के ‘किराये की कोख’ से जन्मे बच्चे मनोवैज्ञानिक पक्ष पर मजबूत होते हैं और पारिवारिक ढांचे एवं संस्कृति में आसानी से ढल जाते हैं। ऐसे में यह मानने की कोई वजह नहीं है कि एकल पिता की देखरेख में पले-बढ़े बच्चे भावनात्मक पहलू पर अधिक चुनौतियों एवं खतरों का सामना करते हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि किसी अन्य परिवार की तरह ही सरोगेसी की बुनियाद पर बने परिवारों में भी माता-पिता और बच्चे के रिश्ते सामान्य होते हैं और उनके मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक विकास पर बुरा असर नहीं पड़ता। ऐसे में अकेले पुरुषों को ‘किराये की कोख’ से पिता बनने का सुख हासिल करने से नहीं रोका जाना चाहिए।
अकेले पिता और बच्चों से उनके रिश्तों को लेकर समाज में मौजूद पूर्वाग्रहों को दूर किए जाने की जरूरत है। इससे सरोगेसी की बुनियाद पर बने परिवारों में पिता और बच्चों के संबंधों के बीच ज्यादा सकारात्मकता लाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, उन देशों में अकेले पुरुषों के लिए ‘किराये की कोख’ से संतान सुख हासिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा, जहां सरोगेसी वैध और बेहद आम है। इसके लिए स्वास्थ्यकर्मियों को अकेली महिलाओं या दंपती की तरह ही अकेले पिताओं के प्रति भी बिना भेदभाव वाला रवैया अपनाने को प्रेरित करना होगा।
क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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