नयी दिल्ली, केंद्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में उस याचिका का विरोध किया जिसमें खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर उसके द्वारा लगायी रॉयल्टी वापस करने का अनुरोध किया गया है। केंद्र ने कहा कि उसे राज्यों को पूर्वव्यापी प्रभाव से रॉयल्टी वापस करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश के ‘बहुआयामी’ प्रभाव होंगे। उच्चतम न्यायालय ने 25 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज वाली भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है और खनिजों पर दी जाने वाली ‘रॉयल्टी’ कोई कर नहीं है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से खनिज संपन्न राज्यों के राजस्व में भारी वृद्धि होगी। लेकिन इससे फैसले के क्रियान्वयन के संबंध में एक और विवाद खड़ा हो गया। विपक्षी दलों द्वारा शासित कुछ खनिज संपन्न राज्यों ने शीर्ष अदालत से इस फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का अनुरोध किया ताकि वे केंद्र से रॉयल्टी वापस मांग सकें। बहरहाल केंद्र ने ऐसे किसी आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इसका ‘‘बहुआयामी’’ प्रभाव होगा। खनन से जुड़ी कंपनियों ने भी खनिज वाले राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के मुद्दे पर केंद्र के दृष्टिकोण का समर्थन किया है। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करवाना चाहते हैं। इस मामले पर सुनवाई जारी है। बहुमत से दिया गया 200 पृष्ठों का यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने खुद और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय न्यायमूर्ति अभय एस ओका न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की ओर से लिखा है। बहरहाल न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी। उन्होंने कहा था कि यदि खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया गया तो इससे संघीय व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि वे आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे और खनिज विकास खतरे में पड़ जाएगा। रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को देता है।क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडियाफोटो क्रेडिट : Wikimedia common