क्या अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से फैली रेडियोधर्मिता दूर हो पाई?

पोर्ट्समाउथ, चेरनोबिल और (कुछ हद तक) फुकुशिमा परमाणु दुर्घटनाओं के कारण जमीन के बड़े हिस्से में निम्न स्तर की रेडियोधर्मिता फैल गई और संदूषण के कारण कई प्रतिकूल परिणाम मिले। दोनों दुर्घटनाओं के बाद, संदूषण दूर करने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किए गए। बहरहाल, फुकुशिमा संयंत्र को लेकर हाल ही में किए गए एक अध्ययन से यह संदेह उठता है कि क्या परिशोधन के यह प्रयास सार्थक थे। संदेह की वजह यह है कि फुकुशिमा संयंत्र के आसपास से संदूषण के कारण अन्यत्र गए लोगों में से एक-तिहाई आबादी अब लौट आई है, लेकिन वन क्षेत्र के कई हिस्सों में संदूषण बरकरार है। फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र में 2011 में हुई दुर्घटना के बाद, लगभग 1,100 वर्ग किलोमीटर भूभाग को खाली कर दिया गया था और एक लाख से अधिक लोगों को अन्यत्र जाना पड़ा था। लगभग आठ गुना बड़े संदूषित क्षेत्र की विकिरण के लिए निरंतर निगरानी की गई, लेकिन यहां से लोगों को नहीं हटाया गया।विकिरण के जोखिम का प्रमुख स्रोत संदूषित मिट्टी, फुटपाथ, सड़कों और इमारतों से उत्सर्जित होने वाली गामा किरणें हैं। परिशोधन अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि फुकुशिमा हादसे के कारण फैले संदूषण का असर लोगों पर 1,000 माइक्रोसीवर्ट सालाना से कम ही हो। यह स्तर संदूषण के सालाना स्तर से अधिक है। जापान में हालांकि सालाना औसत प्राकृतिक विकिरण प्रति वर्ष 2,200 µमाइक्रोसीवर्ट है।
रेडियोसीजियम, विकिरण के संदर्भ में दुर्घटना से उत्सर्जित सबसे महत्वपूर्ण दीर्घकालिक रेडियोधर्मी तत्व है, जो मिट्टी के कणों में चला जाता है। इसे देखते हुए कृषि भूमि के परिशोधन में मुख्य रूप से शीर्ष पांच सेंटीमीटर मिट्टी को हटाना जरूरी था। शहरी क्षेत्रों में, परिशोधन प्रयासों में खेल के मैदानों से ऊपरी मिट्टी को हटाना, कठोर सतहों की सैंडब्लास्टिंग या प्रेशर वाशिंग और नालियों तथा गटर की प्रेशर वाशिंग करना जरूरी था।
इन प्रयासों के चलते आवासीय क्षेत्रों और कृषि भूमि में संदूषण लगभग 60 फीसदी कम हुआ, जिसके बाद विस्थापित लोगों को लौटने की अनुमति मिली। यह चेरनोबिल संस्थान से बहुत दूर है, जहां अंततः व्यापक परिशोधन पहल त्याग दी गई थी। यही वजह है कि चेरनोबिल हादसे के बाद खाली कराया गया भूभाग आज भी खाली है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या फुकुशिमा में संदूषण दूर करने के लिए किया गया परिशोधन कार्य सार्थक था? फुकुशिमा में भूमि को संदूषणमुक्त करने में अरबों डॉलर खर्च हुए हैं। इस प्रक्रिया में शामिल मजदूर भी पर्याप्त विकिरण जोखिम की जद में आए और भारी मात्रा में रेडियोधर्मी मिट्टी अपशिष्ट उत्पन्न हुआ। संदूषणमुक्त करने वाला परिशोधन यह आश्वासन देता है कि विकिरण को ‘‘दूर’’ किया जा रहा है, लेकिन इससे यह भी लग सकता है कि निम्न-स्तर का विकिरण उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है, जितना सोचा जाता है।
फुकुशिमा हादसे से प्रभावित कई क्षेत्रों में परिशोधन अभियान चलाया गया, जहां संदूषण या विकिरण की दर अधिक नहीं थी। वास्तविकता यह है कि दुर्घटना के बाद पहले वर्ष में संदूषण की दर अपेक्षाकृत कम (12,000 μमाइक्रोसीवर्ट) से कम थी और बाद के वर्षों में यह स्तर और घटता गया।
कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि संदूषण दूर करने का आश्वासन लोगों के लिए अहम था। परिशोधन के कारण कृषि भूमि उपयोग के लायक हो गई। हालांकि, ऊपरी मिट्टी को हटाने से मिट्टी की उर्वरता में कमी आ गई।
यह स्पष्ट नहीं है कि हादसे के बाद खाली कराए गए भूभाग के लिए क्या परिशोधन उपयोगी था। यहां विकिरण के संदूषण की दर लगभग दस गुना अधिक थी। अब इस क्षेत्र के करीब 30 फीसदी लोग अपने घरों में लौट आए हैं और सर्वाधिक संदूषित क्षेत्र में भूमि का बड़ा हिस्सा परित्यक्त पड़ा है।
एक बेहतर विकल्प यह हो सकता है कि इस क्षेत्र के अधिकतर हिस्से को ‘‘नेचर रिजर्व’’ घोषित कर दिया जाए और योजना बनाकर इसके प्रबंधन तथा पुनर्निर्माण की अनुमति दी जाए। यह चेरनोबिल में भी हुआ था। इससे परिशोधन कर्मियों को विकिरण के संपर्क में आने से भी बचाया जा सकेगा और लोगों को स्थानांतरित होने मं2 मदद करने के लिए अधिक वित्तीय सहायता मिल पाएगी।बहरहाल, यह एक जटिल निर्णय है, जिसमें वहां से अन्यत्र गए लोगों के साथ साथ कई हितधारकों के विचारों पर विचार करने की आवश्यकता है।
फुकुशिमा के कस्बों, गांवों और उसके आसपास के इलाकों की भूमि को प्रभावी ढंग से संदूषणमुक्त किया गया है। फुकुशिमा प्रांत के 71 फीसदी भाग में जंगल है और जंगल का ज्यादातर हिस्सा संदूषित ही है।
पारिस्थितिक तंत्र में, विशेष रूप से जंगलों में, रेडियोसीजियम की मौजूदगी कई दशकों से ज्ञात है। विश्व स्तर पर मशरूम, खाद्य पौधों, जानवरों और मीठे पानी की मछलियों जैसे जंगली खाद्य पदार्थों में रेडियोसीजियम का स्तर कृषि प्रणालियों की तुलना में अधिक होता है। जंगलों में रेडियोसीजियम का कारण जैविक मिट्टी की व्यापकता और उर्वरक का उपयोग न होना है। पोषक तत्व का कम स्तर भी पौधों द्वारा रेडियोसीजियम के अवशोषण का कारण है। पौधों का एक मुख्य पोषक तत्व पोटैशियम है और यह रेडियोसीजियम से रासायनिक समानता रखता है।
जंगलों में आग का खतरा होता है। चेरनोबिल हादसे के बाद उसके आसपास के जंगलों में कई बार आग लगी है, लेकिन धुएं के साथ बहुत कम विकिरण अंदर जाता है।
परमाणु दुर्घटना के बाद सफाई के संबंध में जवाब आसान नहीं हैं। जापान ने विकिरण घटाने और प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले या लौटने वाले लोगों को आश्वस्त करने के लिए सफल प्रयास किए हैं। लेकिन निम्न स्तर का विकिरण हर जगह रहता है, खासकर जंगलों में। यह भी याद रखना होगा कि परमाणु दुर्घटनाओं से उत्पन्न विकिरण के जैविक प्रभाव मुख्य रूप से डीएनए क्षति के तौर पर होते हैं और ये प्राकृतिक विकिरण के दुष्प्रभावों के समान ही होते हैं। इसके उलट, किसी दुर्घटना के दौरान श्रमिकों को होने वाले विकिरण के दुष्प्रभाव की दर बहुत अधिक हो सकती है। दीर्घकाल में पर्यावरण में होने वाले विकिरण की दर भी कम ही होती है। दुनिया भर में लाखों लोग इसकी चिंता किए बिना, फुकुशिमा क्षेत्र के निवासियों की तुलना में विकिरण की चपेट में अधिक आते हैं, जो कि नुकसानदायक है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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