नयी दिल्ली, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानून जन-केंद्रित हैं और इनमें भारतीय मिट्टी की महक है तथा इनका मुख्य उद्देश्य नागरिकों के संवैधानिक, मानवीय और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है।
भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) द्वारा यहां आयोजित अंतरराष्ट्रीय अधिवक्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए शाह ने यह भी कहा कि इन तीनों विधेयकों का दृष्टिकोण सजा देने के बजाय न्याय प्रदान करना भी है।
शाह ने कार्यक्रम में कहा, ‘‘कानून बनाने का उद्देश्य एक कुशल प्रणाली स्थापित करना है, न कि कानून बनाने वालों की सर्वोच्चता स्थापित करना।’’
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी कार्यक्रमें मौजूद थे।
उन्होंने देश के सभी वकीलों से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए-2023) के बारे में सुझाव देने की अपील की ताकि देश को सर्वश्रेष्ठ कानून मिले और सभी को इसका लाभ हो।
लोकसभा में गत 11 अगस्त को पेश किए गए तीन विधेयक क्रमशः भारतीय दंड संहिता, 1860; दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे।
गृह मंत्री ने कहा, “भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली पर औपनिवेशिक कानून की छाप थी। तीनों नए विधेयकों में औपनिवेशिक छाप नहीं, बल्कि भारतीय मिट्टी की महक है। इन तीन प्रस्तावित कानूनों का केंद्रीय बिंदु नागरिकों के संवैधानिक और मानवाधिकारों के साथ ही उनके व्यक्तिगत अधिकारों की भी रक्षा करना है।”
शाह ने कहा कि वर्तमान समय की मांग को ध्यान में रखते हुए आपराधिक कानूनों में व्यापक बदलाव की पहल की गई है। उन्होंने कहा, “ये कानून लगभग 160 वर्षों के बाद पूरी तरह से नए दृष्टिकोण और नयी प्रणाली के साथ आ रहे हैं। नयी पहल के साथ-साथ कानून-अनुकूल परिवेश बनाने के लिए सरकार द्वारा तीन पहल भी की गई है।”
शाह ने कहा कि पहली पहल ई-कोर्ट, दूसरी पहल अंतर-उपयोगी आपराधिक न्याय प्रणाली (आईसीजेएस) और तीसरी पहल इन तीन प्रस्तावित कानूनों में नयी तकनीक जोड़ने की है।
उन्होंने कहा, “तीन कानूनों और तीन प्रणालियों की शुरुआत के साथ, हम एक दशक से भी कम समय में अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में देरी को दूर करने में सक्षम होंगे।”
शाह ने कहा कि पुराने कानूनों का मूल उद्देश्य ब्रिटिश शासन को मजबूत करना और उद्देश्य दंड देना था, न्याय करना नहीं।
उन्होंने कहा, “इन तीन नए कानूनों का उद्देश्य न्याय प्रदान करना है, सज़ा देना नहीं। यह न्याय प्रदान करने का एक कदम है।”
गृह मंत्री ने कहा कि नए कानूनों में कई बदलाव किए गए हैं और ये प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने कहा कि दस्तावेजों की परिभाषा का काफी विस्तार किया गया है।
उन्होंने कहा, “इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को कानूनी मान्यता दे दी गई है, डिजिटल उपकरणों पर उपलब्ध संदेशों को मान्यता दी गई है तथा एसएमएस से लेकर ईमेल तक सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जाने वाले समन को भी वैध माना जाएगा।”
गृह मंत्री ने कहा कि भीड़ द्वारा हत्या किए जाने (मॉब लिंचिंग) के संबंध में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है और राजद्रोह से संबंधित धारा को समाप्त कर दिया गया है तथा सामुदायिक सेवा को वैध बनाने का काम भी इन नए कानूनों के तहत किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता में 511 धाराओं के मुकाबले भारतीय न्याय संहिता में 356 धाराएं होंगी। उन्होंने कहा कि सीआरपीसी में 487 धाराएं हैं, लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 533 धाराएं होंगी। उन्होंने कहा कि ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ में पहले 167 धाराएं थीं जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं होंगी।
उन्होंने कहा, “मैं देश भर के सभी वकीलों से अपील करना चाहता हूं कि वे इन सभी विधेयकों का विस्तार से अध्ययन करें। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान हैं। अपने सुझाव केंद्रीय गृह सचिव को भेजें और हम कानूनों को अंतिम रूप देने से पहले उन सुझावों पर निश्चित रूप से विचार करेंगे।”
शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि कोई भी कानून तभी सही बन सकता है, जब हितधारकों के साथ दिल से विचार-विमर्श किया जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि पूर्ण न्याय की व्यवस्था को तभी समझा जा सकता है जब कोई उन कानूनों का अध्ययन करे, जो समाज के हर हिस्से को छूते हों।
गृह मंत्री ने कहा कि न्याय वह शक्ति है जो संतुलन लाती है। उन्होंने कहा कि न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए न्याय और सभी प्रकार की शक्ति के बीच संतुलन आवश्यक है।
गृह मंत्री ने कहा कि पिछले नौ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने समकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के लिए नए कानूनों को फिर से तैयार करने या बनाने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने मध्यस्थता कानून, सुलह कानून और जन विश्वास विधेयक जैसे कई कानूनों में बदलाव किए हैं जो न्यायपालिका पर बोझ को कम करने में मदद कर रहे हैं।
शाह ने कहा कि कोई भी कानून अंतिम दस्तावेज नहीं है और यह बदलते समय और व्यवहार में आने वाले मुद्दों के आधार पर विकसित होता है और इन बदलावों के माध्यम से ही कानून अधिक प्रासंगिक और उपयुक्त बनते हैं।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण, फली एस नरीमन, के के वेणुगोपाल को सम्मानित किया। वरिष्ठ अधिवक्ता सोली जे सोराबजी और राम जेठमलानी को मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
शाह ने नरीमन और वेणुगोपाल को पुरस्कार दिए और परासरण का पुरस्कार उनके बेटे एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश परासरण ने प्राप्त किया। शाह ने जेठमलानी और सोराबजी का पुरस्कार उनके परिजनों को दिया।
क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common