नयी दिल्ली दिल्ली सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए केंद्र द्वारा प्रदान किए गए लगभग 788 करोड़ रुपये में से 245 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए और घातक संक्रमण के खिलाफ टीकाकरण के लिए धन राशि जारी करने में भी देरी की। विधानसभा में शुक्रवार को पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2020-2022 में महामारी के दौरान आप सरकार द्वारा गठित राज्य की ‘रैपिड रिस्पांस टीम’ और ‘डेथ ऑडिट कमेटी’ अपने सौंपे गए कार्यों को करने में विफल रही।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने विधानसभा में सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की प्रदर्शन लेखा परीक्षा रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार को केंद्र से आपातकालीन कोविड प्रतिक्रिया योजना के तहत 787.91 करोड़ रुपये मिले जिसमें से नवंबर 2021 तक केवल 542.84 करोड़ रुपये खर्च किए गए। रिपोर्ट में कई मदों के तहत बचत (खर्च न की गई राशि) के ‘महत्वपूर्ण’ प्रतिशत की ओर इशारा किया गया।
इसमें कहा गया है कि कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया के कार्यान्वयन के लिए धन के कम उपयोग के कारणों को दिल्ली सरकार द्वारा लेखा परीक्षकों को नहीं बताया गया। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘कोविड-19 टीकाकरण’ के लिए दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग को दो किस्तों में 9.60 करोड़ रुपये जारी किए (जनवरी 2021 में 3.46 करोड़ रुपये और मार्च 2021 में 6.14 करोड़ रुपये) लेकिन ये धनराशि दिल्ली राज्य स्वास्थ्य सोसायटी (डीएसएचएस) को अप्रैल और मई 2021 में जारी की गई।
रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ‘डीएसएचएस’ ने आगे वितरण के लिए एकीकृत जिला स्वास्थ्य समितियों को धनराशि भेज दी थी। उपयोग प्रमाण पत्र के अनुसार मार्च 2022 तक 9.60 करोड़ रुपये में से 7.93 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए गए। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड के मद्देनजर आपातकालीन तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिए मार्च 2020 में गठित राज्य की ‘रैपिड रिस्पांस टीम’ (आरआरटी) अपने निर्धारित कार्य को पूरा करने में ‘विफल’ रही।
रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘लेखापरीक्षा में आरआरटी के कामकाज में कमियां पाई गईं और साथ ही विभिन्न एजेंसियों द्वारा इसके निर्देशों की पूरी तरह से अवहेलना की गई। इसके गठन के बाद आरआरटी की केवल पांच बार बैठक हुई सभी 2020 में और 2021 और 2022 में कोई बैठक नहीं हुई।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि आरआरटी द्वारा सुझाई गई गतिविधियां जो कोविड प्रकोप के बेहतर प्रबंधन में मदद कर सकती थीं उन्हें लागू नहीं किया गया जिससे इसके गठन का उद्देश्य विफल हो गया।
कोविड महामारी के प्रकोप को देखते हुए दिल्ली सरकार ने सरकारी और निजी अस्पतालों में कोविड-19 संक्रमित मरीज की हर मौत का ‘ऑडिट’ करने के लिए एक ‘डेथ ऑडिट कमेटी’ (मृत्यु लेखा समिति) का गठन किया था। रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘यह देखा गया कि ‘डेथ ऑडिट कमेटी’ ने जनवरी से दिसंबर 2021 की अवधि के दौरान कोविड-19 से हुई किसी भी मौत का विश्लेषण नहीं किया। लेखापरीक्षा के लिए प्रस्तुत रिकॉर्ड (जनवरी 2022 से अप्रैल 2022) से पता चला कि रिपोर्ट की गई 938 मौतों में से कमेटी द्वारा केवल 684 मौतों का विश्लेषण किया गया।’
’ शेष 254 मामलों (27.07 प्रतिशत) में संबंधित अस्पतालों द्वारा कोविड-19 से हुई मौतों का ब्योरा प्रस्तुत नहीं किया गया। इसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोविड-19 से जुड़े मामलों के बेहतर प्रबंधन के लिए रणनीति तैयार करने के लिए ‘डेथ ऑडिट कमेटी’ की दैनिक रिपोर्टों का उपयोग नहीं किया जा रहा था जिससे कमेटी के गठन का उद्देश्य ही विफल हो रहा था।
रिपोर्ट के मुताबिक लोक नायक अस्पताल (एलएनएच) राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (आरजीएसएसएच) जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (जेएसएसएच) और चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय (सीएनबीसी) में आंतरिक चिकित्सा और डेथ ऑडिट कमेटी का गठन केवल कोविड-19 से हुई मौतों के मामले की जांच के लिए किया गया था।क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडियाफोटो क्रेडिट : Wikimedia common