नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके राजनीतिक नियुक्तियां स्वीकार करने से पहले दो साल का अंतराल रखने का अनुरोध करने वाली एक याचिका बुधवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
पीठ ने कहा कि यह इस मुद्दे की पड़ताल नहीं कर सकती कि क्या कोई पूर्व न्यायाधीश लोकसभा के लिए निर्वाचित हो सकता है, या राज्यसभा में मनोनीत हो सकता है। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘यह मुद्दा कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ना होगा, या एक कानून लाना होगा, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश देने का विषय नहीं बन सकता।’’ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि इस तरह के प्रावधान का अभाव लोगों के मन में एक गलत धारणा पैदा कर रहा। पीठ ने वकील से पूछा, ‘‘राजनीतिक नियुक्ति क्या है?’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह सब गंभीरता से नहीं लेने वाले विषय हैं। यह न्यायाधीश पर निर्भर है कि वह इनकार करना चाहते हैं या इनकार नहीं करते हैं।’’ पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि क्या शीर्ष न्यायालय कह सकता है कि सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी व्यक्ति अधिकरण में नियुक्त नहीं हो सकता।
वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल उन नियुक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं, जो सरकार के विवेकाधिकार पर निर्भर है और जिसके लिए सेवानिवृत्ति के बाद दो साल का अंतराल होना चाहिए।
न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर काफी चीजें निर्भर रहने का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल एक मामला चुना है। हालांकि, इसने अदालत में किसी का नाम नहीं लिया है। पीठ ने कहा, ‘‘आप नहीं चाहते कि एक खास व्यक्ति राज्यपाल बने।’’
क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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