न्यायालय ने यूएपीए प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाएं वापस लेने की अनुमति दी

नयी दिल्ली, गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले व्यक्तियों और समूहों ने बृहस्पतिवार को अचानक उच्चतम न्यायालय में अपनी याचिकाएं वापस ले लीं और कहा कि उन्होंने उचित मंचों पर जाने का निर्णय लिया है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने बुधवार को कहा था कि वह यूएपीए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली “परोक्ष मुकदमेबाजी” की अनुमति नहीं देगी। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि वे राहत के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों से संपर्क करेंगे, जिसके बाद उन्हें आठ याचिकाएं वापस लेने की अनुमति मिल गई। पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से बृहस्पतिवार को यह पता करने के लिये कहा था कि क्या वे यूएपीए मामलों में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहते हैं या वे शीर्ष अदालत में कानून को चुनौती देना चाहते हैं? एक पत्रकार समेत नागरिक समाज के तीन सदस्यों की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने याचिकाएं वापस लेने के लिए कहा है। त्रिपुरा पुलिस ने राज्य में हुए दंगों के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर 2021 में यूएपीए के तहत इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। भूषण ने कहा कि गिरफ्तारी से संरक्षण देने वाले 17 नवंबर, 2021 के अंतरिम आदेश को दो सप्ताह के लिए बढ़ाया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि अदालत ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करेगी। हालांकि पीठ ने मौखिक रूप से त्रिपुरा पुलिस को कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा, “आम तौर पर, हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं करते। हम ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करेंगे। हम आदेश में कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन आप (त्रिपुरा पुलिस) कुछ न करें।” भूषण ने पीठ से याचिकाकर्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उच्च न्यायालय में पेश होने की अनुमति देने का आग्रह किया। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय हर चीज का सूक्ष्म प्रबंधन नहीं कर सकता और उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस या किसी अन्य माध्यम से पेश होने के लिए उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा था कि वह यूएपीए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली “परोक्ष मुकदमेबाजी” की अनुमति नहीं देगा तथा आतंकवाद निरोधक कानून के खिलाफ उन्हीं लोगों की याचिका पर सुनवाई करेगा, जो व्यक्तिगत तौर पर इससे पीड़ित हैं। अदालत ने वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी की दलीलें सुनने से इनकार कर दिया था, जो आतंकवाद विरोधी कानून को चुनौती देने के लिए रिट याचिकाएं दायर करने वालों की ओर से पेश हुए थे। अदालत ने कहा था, “याचिकाकर्ता एक पीड़ित पक्ष होना चाहिए और उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ होना चाहिए। केवल तभी विधायी प्रावधान की शक्तियों को चुनौती देने का सवाल उठ सकता है।” पीठ ने कहा था कि जनहित याचिका के मामलों में अधिकार क्षेत्र का सिद्धांत सख्त अर्थों में लागू नहीं हो सकता, लेकिन जहां किसी कानून के दायरे को चुनौती दी गई है, वहां भागीदारी की झलक होनी चाहिए न्यायमूर्ति मित्तल ने कहा था, “क्या यह परोक्ष मुकदमेबाजी नहीं होगी? जहां किसी कानून के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी गई है, वहां भागीदारी की झलक होनी चाहिए, अन्यथा यह उन व्यक्तियों की ओर से परोक्ष मुकदमा होगा, जो सामने नहीं आना चाहते हैं। इसकी अनुमति (कतई) नहीं होगी। हमें ऐसे परोक्ष मुकदमे की अनुमति देने के बारे में सावधान रहना होगा।” क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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