पश्चिम अंटार्कटिका में तेजी से पिघलती बर्फ चिंताजनक, लेकिन अभी भी उपाय संभव हैं

न्यू कैसल, हमारे नये शोध से संकेत मिलता है कि गर्म होता दक्षिणी महासागर पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादर को जिस दर से पिघला रहा है, वह आने वाले दशकों में उत्सर्जन में गिरावट आने के बावजूद और तेज हो जाएगी। इससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने की आशंका है, जिसके प्रतिकूल परिणाम दुनिया भर के तटीय समुदायों पर पड़ेंगे। अंटार्कटिक में बर्फ की चादर वास्तव में परस्पर जुड़े ग्लेशियर की एक प्रणाली है, जिसमें साल भर बर्फबारी होती रहती है। तटीय बर्फ यानी आइस शेल्फ इस बर्फ की चादर के तैरते हुए किनारे हैं, जो उनके पीछे के ग्लेशियर को स्थिर करते हैं। समुद्री जल के तापमान में वृद्धि से ये आइस शेल्फ पिघलने लगते हैं। ऐसे में इनके साथ-साथ ग्लेशियर भी पिघलते हैं और समुद्र में ताजा पानी आने की गति तेज हो जाती है, जिसके कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है। पश्चिमी अंटार्कटिका में यह प्रक्रिया दशकों से चल रही है। आइस शेल्फ छोटे हो रहे हैं, ग्लेशियर तेजी से समुद्र की ओर बह रहे हैं और बर्फ की चादर सिकुड़ रही है। हालांकि, इस क्षेत्र में समुद्र का तापमान माप सीमित है, लेकिन मॉडलिंग व्यवस्था से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप समुद्र का तापमान बढ़ गया है।
यह स्थिति खासकर एमंडसेन सागर में अधिक है, जिसे हमने मॉडल चुना, क्योंकि यह बर्फ की चादर के सिकुड़ने के लिहाज से सर्वाधिक जोखिम वाला क्षेत्र है। हमने एक क्षेत्रीय महासागर मॉडल का भी उपयोग किया। हमने 21वीं सदी के कई अलग-अलग सिमुलेशन चलाने के लिए ब्रिटेन के राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटर आर्चर2 का उपयोग किया, जिसमें समुद्र के गर्म होने और एमंडसेन सागर में 4,000 साल से अधिक समय से बर्फ पिघलने के बारे में बताया गया है।
हमने जलवायु में प्राकृतिक विविधताओं के प्रभाव पर भी विचार किया, जैसे अल नीनो जैसी घटनाओं का समय। साथ ही जीवाश्म ईंधन संबंधी पहलू का भी विश्लेषण किया गया।
हमें नतीजे चिंताजनक लगे। इस सदी के दौरान समुद्र के गर्म होने और बर्फ के पिघलने की दर में तेजी से वृद्धि हुई है। यहां तक कि सबसे अच्छी स्थिति में भी, जिसमें ‘ग्लोबल वार्मिंग’ 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रुक जाती है। इसे कई विशेषज्ञ महत्वाकांक्षी मानते हैं। इसमें तापमान बढ़ने तथा बर्फ पिघलने की ऐतिहासिक दर में तीन गुना वृद्धि शामिल है।
बर्फ की पिघलती परतें समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का एक प्रमुख कारण हैं, लेकिन यह पूरी कहानी नहीं है। हम अंटार्कटिक में ग्लेशियर के प्रवाह और बर्फ की चादर पर बर्फ जमा होने की दर का आकलन किए बिना समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का अनुमान नहीं लगा सकते।
लेकिन यह तो निर्विवाद है कि इस क्षेत्र में बर्फ के लगातार पिघलने से समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
पश्चिमी अंटार्कटिक में बर्फ की सिकुड़ती चादर पहले से ही वैश्विक स्तर पर समुद्री जल स्तर में वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है और प्रति वर्ष लगभग 80 अरब टन बर्फ खत्म हो रही है। इसमें समुद्र के जल स्तर को पांच मीटर तक बढ़ाने के लिए पर्याप्त बर्फ है, लेकिन हम नहीं जानते कि इसका कितना हिस्सा पिघलेगा और कितनी जल्दी पिघलेगा। जलवायु परिवर्तन के कुछ ऐसे परिणाम हैं, जिन्हें अब टाला नहीं जा सकता, चाहे जीवाश्म ईंधन का उपयोग कितना भी कम हो जाए। 2100 तक पश्चिमी अंटार्कटिक की बर्फ का लगातार पिघलना उनमें से एक हो सकता है।वायुमंडलीय वैज्ञानिक केट मार्वल ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है, तो ‘‘हमें आशा की नहीं, साहस की आवश्यकता होती है… साहस सुखद अंत के आश्वासन के बिना अच्छा करने का संकल्प है।’’ इस मामले में, साहस का अर्थ है अपना ध्यान लंबी अवधि की ओर केंद्रित करना। भविष्य 2100 में समाप्त नहीं होगा, भले ही इसे पढ़ने वाले अधिकांश लोग तब आसपास नहीं होंगे। तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान बताता है कि सदी के अंत तक बर्फ की चट्टानें पिघलना शुरू हो जाएंगी, लेकिन शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि 22वीं सदी और उसके बाद के बदलावों को अभी भी रोका जा सकता है। 2100 के बाद समुद्र के स्तर में वृद्धि को कम या धीमा करने से कई तटीय शहरों को बचाया जा सकता है। हमें स्थिति को स्वीकारना होगा और समय की मांग पर ध्यान देना होगा। तटीय समुदायों की रक्षा करनी होगी। जहां यह संभव नहीं होगा, वहां पुनर्निर्माण पर ध्यान देना होगा या सुरक्षा के उपाय अपनाने होंगे।
समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के पूर्वानुमान से हमारे पास समुचित योजनाएं बनाने का समय होगा -बजाय इसके कि हम, समुद्र के हमारे दरवाजे तक पहुंचने और फिर कदम उठाने का इंतजार करें।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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