मायावती की बसपा को नहीं मिली एक भी सीट, अपनी प्रासंगिकता खोई

लखनऊ  पिछले लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में चिर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन करके बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 10 सीट जीती थी  लेकिन इस बार मायावती की अगुवाई वाली पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है  जिससे राज्य में दलितों की आवाज का प्रतिनिधित्व करने की इसकी प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा है।

             बसपा ने जिस तरह से उम्मीदवारों का चयन किया था  उससे विपक्षी समूह की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश झलकती थी  लेकिन समाजवादी पार्टी का राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना और उसके साथ साझेदारी में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन दर्शाता है कि मायावती का चुनावी आकर्षण खत्म हो गया है।

             साल 2014 के आम चुनाव में बसपा ने एक भी सीट नहीं जीती थी  लेकिन 2019 के संसदीय चुनाव में उसने सपा के साथ गठबंधन के तहत 38 लोकसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें से उसने 10 सीट पर जीत दर्ज की थी।

             दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बसपा को 19 फीसदी से अधिक वोट मिले थे । इस बार बसपा प्रमुख के सामने एक कठिन चुनौती थी क्योंकि उन्होंने  चुनावों में अकेले जाने की घोषणा की थी और उनके कई सांसदों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था।

             इसके अलावा  राजनीतिक विरोधियों ने विभिन्न मुद्दों पर मायावती द्वारा लिए गए सार्वजनिक रुख के आधार पर बसपा को भाजपा की  बी  टीम करार दिया था। हाल के राज्यसभा चुनावों में  उनके एकमात्र विधायक उमा शंकर सिंह ने भाजपा को वोट दिया था जिससे इन आरोपों को और बल मिला।

             बसपा का मुख्य दलित वोट बैंक राज्य की चुनावी राजनीति में इसे प्रासंगिक बनाता है। प्रदेश के मतदाताओं में दलितों की हिस्सेदारी 20 फीसदी से अधिक है।

             भाजपा ने दलित समुदाय से आने वाली बेबी रानी मौर्य को राज्य में मंत्री बनाकर और अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर आजाद  रावण  को बढ़ावा देकर मायावती के राजनीतिक प्रभाव को कम करने की कोशिश की।

             नतीजे बताते हैं कि मायावती की बसपा अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। मायावती न तो सत्तारूढ़ राजग गठबंधन और न ही विपक्षी  इंडिया  गठबंधन का घटक रही हैं और उन्होंने इन चुनावों में अकेले जाने का फैसला किया था।  मौजूदा चुनाव से पहले बसपा 10 सांसदों में से अधिकांश भाजपा में चले गए थे और कुछ ने सपा का दामन थाम लिया था। बसपा सुप्रीमो ने इस बार नए चेहरों को मैदान में उतारा था।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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