रुपये में गिरावट से निर्यातकों को अधिक लाभ नहीं होता : विशेषज्ञ

नयी दिल्ली,  देश से होने वाले आयात की मात्रा निर्यात से कहीं अधिक होने और वैश्विक बाजार में अनिश्चितताएं कायम रहने के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आने से घरेलू निर्यातकों का लाभ सीमित हो रहा है। विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी है।  कमजोर रुपया आमतौर पर वैश्विक बाजारों में भारतीय वस्तुओं को सस्ता बनाकर निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाता है  लेकिन कुछ कारक संभावित लाभ को सीमित कर रहे हैं।

           उन्होंने कहा कि कई निर्यातक आयातित कच्चे माल पर बहुत अधिक निर्भर हैं  और रुपये में गिरावट के कारण आयात की बढ़ी हुई लागत की वजह से जो लाभ होना होता है वह सीमित हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ बिस्वजीत धर ने कहा  ‘‘परिणामस्वरूप  रुपये में गिरावट के बावजूद  निर्यातकों को मुद्रा की चाल से लाभ उठाने में मुश्किल हो रही है।’’ पिछले साल एक जनवरी को 83.19 के स्तर से घरेलू मुद्रा में चार प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।

           सोमवार को रुपया लगभग दो वर्षों में सबसे बड़ी एक-दिन की गिरावट के साथ 86.62 (अस्थायी) के ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ  जो अमेरिकी मुद्रा के मजबूत होने और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के कारण हुआ। इसी तरह का दृष्टिकोण जताते करते हुए  भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की राष्ट्रीय निर्यात-आयात समिति के चेयरमैन संजय बुधिया ने कहा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट को अक्सर निर्यातकों के लिए वरदान माना जाता है  लेकिन करीब से जांच करने पर पता चलता है कि लाभ अपेक्षाकृत मामूली है और विभिन्न लागत कारकों की वजह से होने वाला लाभ सीमित रह जाता है।

           बुधिया ने कहा  ‘‘रुपये में गिरावट से कच्चे माल  कलपुर्जों और अन्य आदान लागत में वृद्धि होती है  जो डॉलर में मूल्यांकित होते हैं। आदान लागत में यह वृद्धि कमजोर रुपये से प्राप्त प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को खत्म कर देती है।’’ इसके अलावा  शिपिंग  बीमा और विपणन जैसे खर्च भी डॉलर में मूल्य में होते हैं  जिससे रुपये का लाभ खत्म हो जाता है।

           बुधिया  जो पैटन ग्रुप के प्रबंध निदेशक (एमडी) भी हैं  ने कहा  ‘‘हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चीनी युआन  जापानी येन और मैक्सिकन पेसो जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की मुद्रा में इसी अवधि में भारतीय रुपये के मुकाबले अधिक गिरावट आई है।’’

           अधिकांश निर्यातक मुद्रा में उतार-चढ़ाव के खिलाफ अपने जोखिम को कम करने के लिए फॉरवर्ड कवर लेते हैं। इसलिए ऐसे निर्यातक रुपये के मूल्यह्रास के मामले में बहुत अधिक नुकसानदेह स्थिति में हैं  क्योंकि उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाएगी जबकि प्राप्ति वही रहेगी।

           लुधियाना स्थित इंजीनियरिंग क्षेत्र के निर्यातक एस सी रल्हन ने कहा कि गिरावट छोटे निर्यातकों की मदद कर सकती है  लेकिन मध्यम और बड़े निर्यातकों को इस गिरावट से बहुत अधिक लाभ नहीं मिलता है क्योंकि वे अपने विनिर्माण के लिए बहुत अधिक कच्चा माल आयात करते हैं।

           रल्हन ने कहा  ‘‘खरीदार भी छूट की मांग करने लगते हैं। इसलिए एक तरह से गिरावट बाजार को परेशान करती है।’’ उन्होंने कहा कि रुपये में गिरावट से निर्यातक को बहुत अधिक लाभ नहीं होगा क्योंकि भारत के प्रमुख निर्यात सामान जैसे फार्मास्युटिकल्स  रत्न और आभूषणों में आयात सामग्री अधिक है।

           विशेषज्ञों में से एक ने कहा कि रुपये का कम या अधिक होना कोई मायने नहीं रखता  ‘‘जो चिंताजनक है वह है अस्थिरता यानी उतार चढ़ाव। स्थिरता होनी चाहिए  अगर अस्थिरता है तो कोई नहीं जान पाएगा कि अनिश्चितता से कैसे निपटा जाए।’’ उनके अनुसार  भारतीय रुपये में गिरावट से कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान तक का आयात महंगा हो जाएगा   विदेशी शिक्षा और विदेश यात्रा मंहगी होगी जबकि उच्च मुद्रास्फीति की आशंका बढ़ जाएगी।

           रुपये में गिरावट का प्राथमिक और तत्काल प्रभाव आयातकों पर पड़ता है  जिन्हें समान मात्रा और कीमत के लिए अधिक भुगतान करना होगा। भारत पेट्रोल  डीजल और विमान ईंधन की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 85 प्रतिशत विदेशी कच्चे तेल पर निर्भर है। भारतीय आयात की वस्तुओं में कच्चा तेल  कोयला  प्लास्टिक सामग्री  रसायन  इलेक्ट्रॉनिक सामान  वनस्पति तेल  उर्वरक  मशीनरी  सोना  मोती  कीमती और अर्ध-कीमती पत्थर और लोहा और इस्पात शामिल हैं।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

%d bloggers like this: