लद्दाख के उपराज्यपाल ने करगिल परिषद चुनावों में ‘पारदर्शिता’ का आश्वासन दिया

जम्मू, लद्दाख के उपराज्यपाल ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बी डी मिश्रा ने करगिल की जनता को अगले महीने स्वतंत्र और निष्पक्ष पर्वतीय परिषद के चुनाव का आश्वासन देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) को ‘हल’ चिन्ह की अनुमति नहीं देने के खिलाफ अदालतों में अपने प्रशासन की लंबी लेकिन असफल लड़ाई का बचाव किया। उपराज्यपाल ने अपने ऊपर पक्षपाती होने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इशारे पर काम करने के आरोपों को भी पूरी तरह से गलत बताते हुए खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने छह सितंबर को केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में पर्वतीय परिषद चुनावों के लिए निर्वाचन विभाग की पांच अगस्त की अधिसूचना को रद्द करते हुए एक सप्ताह के भीतर नया चुनाव कार्यक्रम जारी करने का आदेश दिया था। नेकां को ‘हल’ चुनाव चिह्न पाने की हकदार बताते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने पार्टी को इस चिह्न के आवंटन का विरोध करने संबंधी लद्दाख प्रशासन की याचिका खारिज कर दी थी और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। नेकां के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा था कि भाजपा और लद्दाख प्रशासन ने उन्हें उनके अधिकार से वंचित करने के लिए ‘हर संभव कोशिश’ की लेकिन अदालत ने सब सही कर दिया। लद्दाख निर्वाचन विभाग द्वारा जारी नयी अधिसूचना के अनुसार, करगिल में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) के चुनाव चार अक्टूबर को होंगे। उपराज्यपाल मिश्रा ने जम्मू में पीटीआई-वीडियो को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं भारत के संविधान का पुजारी हूं और मैनें इसकी रक्षा करने की शपथ ली है। मैं लोकतंत्र का भक्त हूं और इसलिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार हूं। मेरा संकल्प हैं कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों।’’ उन्होंने कहा कि वह ‘‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’’ तरीके से चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों की तैनाती सहित पूरी चुनाव प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं। नेकां द्वारा पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाए जाने पर मिश्रा ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से गलत बयान या गलत संकेत हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं लद्दाख का उपराज्यपाल हूं और मेरे लिए हर दल एक समान है। मुझे किसी भी दल से कोई संक्षिप्त जानकारी, सुझाव या निर्देश नहीं मिल रहा है। जिम्मेदार पार्टियां जानती हैं कि लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए। इसका निर्णय कानूनों, नियमों और विनियमों द्वारा किया जाना है।’’ सेना के सेवानिवृत्त बिग्रेडियर ने कहा कि उन्होंने चुनाव से पहले हर चीज का अध्ययन किया था क्योंकि उन्हें पता था कि ऐसे मुद्दे सामने आ सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने अध्ययन किया और अपने सचिवों और अन्य लोगों के साथ इस पर चर्चा की तो किसी भी दल के लिए कोई चिह्न आरक्षित करने का मुद्दा ही नहीं था। इसलिए फिर मैंने दिल्ली में कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श किया और यहां तक कि मैंने सरकार के लिए कार्य करने वाले बहुत वरिष्ठ लोगों एवं अधिवक्ताओं से भी परामर्श किया। वरिष्ठ लोगों ने बताया कि चुनाव चिह्न भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा आरक्षित किया जा सकता है न कि केंद्रशासित प्रदेश सरकार द्वारा।’’ उपराज्यपाल ने कहा कि उन्होंने स्वयं अध्ययन के बाद और अन्य लोगों से मिली सलाह के आधार पर यह निर्णय लिया था। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने नेकां उम्मीदवारों को पार्टी के चिह्न पर लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी), करगिल का आगामी चुनाव लड़ने की अनुमति देने वाले एकल पीठ के आदेश के खिलाफ लद्दाख प्रशासन की याचिका खारिज कर दी थी। प्रशासन ने एकल पीठ के नौ अगस्त के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ का रुख किया था, जिसने नेकां को चुनाव के लिए पहले से आवंटित चिह्न ‘हल’ को अधिसूचित करने के लिए लद्दाख प्रशासन के निर्वाचन विभाग के कार्यालय से संपर्क करने का निर्देश दिया था। पांच अगस्त को निर्वाचन विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, 30 सदस्यीय एलएएचडीसी, करगिल की 26 सीट के लिए मतदान 10 सितंबर को होना था, जबकि वोटों की गिनती के लिए चार दिन बाद की तारीख निर्धारित की गई थी।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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