लॉस एंजिलिस : वैज्ञानिकों ने समुद्र की सहत पर भूकंप से होने वाली आवाज का विश्लेषण कर यह पता करने का अनूठा तरीका विकसित किया कि हिंद महासागर कितनी तेजी से गर्म हो रहा है।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तरीके को और अधिक परिष्कृत करने से अपेक्षाकृत कम लागत पर सभी महासागरों के तापमान की निगरानी करने में मदद मिलेगी।
अमेरिका स्थित कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कालटेक) सहित विभिन्न संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी पर मौजूद अतिरिक्त ऊष्मा का 95 प्रतिशत हिस्सा कार्बन-डाई-ऑक्साइड जैसी हरित गैसों के रूप में समुद्रों में मौजूद है। इसलिए समुद्र के पानी के तापमान की निगरानी करना महत्वपूर्ण है।
साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने मौजूदा भूकंप निगरानी उपकरणों के साथ-साथ भूकंप के ऐतिहासिक आंकड़ों का इस्तेमाल यह पता लगाने में किया कि महासागर के तापमान में कितना बदलाव आया है और यह कैसे बदल रहा है। यहां तक गहराई में मौजूद स्थानों के तापमान की जानकारी प्राप्त की गई जो पारंपरिक उपकरणों से संभव नहीं थी।
वैज्ञानिकों ने विषुवतीय पूर्व हिंद महासागर के 3000 किलामीटर लंबे हिस्से का विश्लेषण किया और पाया कि वर्ष 2005 से लेकर वर्ष 2016 के बीच तापमान में उतार-चढ़ाव आया है। साथ ही दशकीय गर्म होने की परिपाटी पूर्व के अनुमानों से काफी हद तक अधिक है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक अबतक की धारणा के विपरीत समुद्र 70 प्रतिशत अधिक तेजी से गर्म हो रहा है।
हालांकि, वे तत्काल किसी नतीजे पर पहुंचने से बचते नजर आए क्योंकि उनके मुताबिक अभी और आंकड़ों को एकत्र करने और विश्लेषण करने की जरूरत है।
अध्ययन पत्र के सह लेखक और कॉलटेक से संबद्ध जॉर्न कैलिस ने रेखांकित किया कि पानी के भीतर भूंकप से उत्पन्न आवाज की मदद से जिस पद्धति का इस्तेमाल किया गया है वह शक्तिशाली है और समुद्र में कमजोर हुए बिना लंबी दूरी तय कर सकती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि जब समुद्र के नीचे भूकंप आता है तो अधिकतर ऊर्जा जमीन के जरिये यात्रा करती है लेकिन ऊर्जा का कुछ हिस्सा पानी में ध्वनि के रूप में संचारित होता है।
उन्होंने बताया कि ध्वनि तरंगे भूकंप के केंद्र से बाहर की ओर निकलती हैं, ठीक वैसे ही भूंकपीय तरंगें जमीन के जरिये यात्रा करती हैं, लेकिन ध्वनि तरंगे कम गति से आगे बढ़ती हैं।
अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि भूकंपीय तरंगें भूकंप निगरानी केंद्र तक पहले पहुंचती हैं और इसके बाद ध्वनि तरंगे पहुंचती हैं, जो एक ही घटना की द्वितीयक संकेत है।
उन्होंने कहा कि चूंकी समुद्र का पानी गर्म होने से ध्वनि की गति बढ़ जाती है। ऐसे में उन्होंने एक निश्चित दूरी को तय करने में ध्वनि तरंगों को लगे समय का इस्तेमाल समुद्र के पानी के तापमान का पता लगाने में किया।
वैज्ञानिकों ने कहा कि एक ही स्थान पर आने वाले भूकंप के झटकों के आंकड़ों का विश्लेषण कर समुद्र जल के गर्म होने की दर का भी पता लगाया जा सकता है।
कालटेक से संबद्ध और अध्ययन पत्र के प्रमुख लेखक वेंबू वू ने कहा, ‘‘ हमने उदाहरण के लिए इंडोनेशिया के सुमात्रा तट के पास समुद्र में आने वाली भूकंपों को लिया और उनसे उठी ध्वनि तरंगों के मध्य हिंद महासागर में पहुंचने में लगे समय का आकलन किया।’’
क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया