नयी दिल्ली, भारत अपने इस रुख पर कायम है कि श्रम एवं पर्यावरण जैसे मामले गैर-व्यापारिक मुद्दे हैं और उनकी चर्चा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में नहीं होनी चाहिए। एक अधिकारी ने बुधवार को यह बात कही।
अधिकारी ने कहा कि पर्यावरण-अनुकूल विकास की आड़ में व्यापार बाधाएं खड़ी नहीं की जानी चाहिए और इन मुद्दों की चर्चा संयुक्त राष्ट्र जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर की जा सकती है। डब्ल्यूटीओ के 164 सदस्य देशों के व्यापार मंत्री इस महीने के अंत में कृषि जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए अबू धाबी में एकत्रित होंगे। इस लिहाज से भारत की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है। विकसित देश इन गैर-व्यापारिक मुद्दों पर औपचारिक बातचीत शुरू करने पर जोर दे रहे हैं और वे अबू धाबी बैठक में भी इन मुद्दों को उठाने का प्रयास करेंगे।
डब्ल्यूटीओ का 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एमसी) 26-29 फरवरी को संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में होगा। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन जिनेवा स्थित बहुपक्षीय व्यापार निकाय का निर्णय लेने वाला शीर्ष निकाय है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘पर्यावरण और श्रम जैसे मामले गैर-व्यापारिक मुद्दे हैं। डब्ल्यूटीओ में इन पर चर्चा नहीं की जा सकती है। हम इस रुख पर कायम हैं। ऐसे विशिष्ट निकाय हैं जहां इन मुद्दों पर चर्चा की जानी चाहिए। ये व्यापार से जुड़े मुद्दे नहीं हैं लेकिन इनका व्यापार पर असर पड़ता है।’’भारत ने पर्यावरणीय उपायों को संरक्षणवादी गैर-शुल्क कदमों के रूप में इस्तेमाल करने की उभरती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए पिछले साल मई में डब्ल्यूटीओ में इस पर एक दस्तावेज भी जमा किया था। उसमें कहा गया था कि यूरोपीय संघ के कार्बन कर और वनों की कटाई कानून जैसे एकतरफा उपायों का उपयोग बढ़ रहा है जो व्यापार पर असर डाल रहा है।
अधिकारी ने कहा, “इस तरह के उपाय न केवल डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं, बल्कि कुल मिलाकर इनका अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए व्यवस्था के स्तर पर भी असर पड़ सकता है। एकतरफा कार्रवाई बहुपक्षीय बातचीत से हासिल अधिकारों और दायित्वों को कमजोर करती है।”
इससे पहले भारत, रूस और ब्राजील सहित कई देशों ने जिनेवा में डब्ल्यूटीओ की एक बैठक में यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन कर और वनों की कटाई विनियमन पर चिंता व्यक्त की थी। इसमें कहा गया था कि ये उपाय उनके उद्योगों को प्रभावित करेंगे।
क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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