अदालत ने ताजमहल को लेकर दायर याचिका की खारिज,याचिकाकर्ता को फटकार लगाई

लखनऊ,इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने ताजमहल के ‘सच’ को सामने लाने के लिए ‘तथ्यान्वेषी जांच’ की मांग करने वाली और इस वैश्विक धरोहर परिसर में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करने वाली याचिका को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत लापरवाही भरे तरीके से दायर की गई याचिका पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश पारित नहीं कर सकती है।

खंडपीठ ने बिना कानूनी प्रावधानों के याचिका दायर करने के लिए याचिकाकर्ता के वकील रुद्र विक्रम सिंह की खिंचाई भी की।

खंडपीठ ने उनसे यह भी कहा कि याचिकाकर्ता यह नहीं बता सके कि उनके किस कानूनी या संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।

जब याचिकाकर्ता के वकील ने कुछ इतिहासकारों के हवाले से ताजमहल के इतिहास के बारे में अपनी बात कहनी शुरू की तो पीठ ने कहा “क्या हम ताजमहल की आयु निर्धारित करने के लिए बैठे हैं?” न्यायालय ने कहा “हम अलग-अलग ऐतिहासिक कारणों पर आधारित परस्पर विरोधाभासी विचारों पर कोई निर्णय नहीं दे सकते।” दलीलों के बाद जब पीठ याचिका खारिज करने जा रही थी तो याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से याचिका वापस लेने और बेहतर कानूनी शोध के साथ एक और नई याचिका दायर करने की अनुमति देने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और याचिका खारिज कर दी।

गौरतलब है कि अयोध्या निवासी रजनीश सिंह ने ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए एक समिति गठित करने और इस ऐतिहासिक इमारत में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करते हुए याचिका दायर की थी।

याचिका में 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी। इन्हीं कानूनों के तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला और आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था ।

कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अतीत में दावा किया था कि मुगल काल का यह मकबरा भगवान शिव का मंदिर था। यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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