अस्पतालों को सुरक्षित बनाने और रोगियों के लिए सुलभ बनाने के बीच संतुलन की जरूरत: एम्स निदेशक

यी दिल्ली, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-दिल्ली के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने कहा कि अस्पतालों को सुरक्षित बनाने और साथ ही मरीजों के लिए डॉक्टरों से स्वतंत्र परामर्श की सुविधा उपलब्ध कराने के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए। यह बात उन्होंने आर जी कर बलात्कार-हत्याकांड के बाद पूरे भारत में चिकित्सकों द्वारा की जा रही सुरक्षित कार्य वातावरण की मांग के बीच कही।पीटीआई के संपादकों के साथ विशेष साक्षात्कार में डॉ श्रीनिवास ने कहा कि चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा और आराम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है और सारा ध्यान मरीजों की देखभाल और ‘उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहने’ पर केंद्रित रहा है।पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित कोलकाता स्थित आर जी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने अस्पताल के बुनियादी ढांचे की कमजोरियों के साथ-साथ चिकित्सा पेशेवरों की कार्य स्थितियों और सुरक्षा पर तीव्र बहस छेड़ दी है। कोलकाता की घटना के बाद चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए बनाए गए राष्ट्रीय कार्य बल के सदस्य डॉ श्रीनिवास ने कहा कि रेजिडेंट चिकित्सकों की मांग ने सभी की आंखें खोल दी हैं। उन्होंने कहा ‘‘यदि आप एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को देखें तो वे ड्यूटी रूम बुनियादी सुविधाओं छात्रावासों और निर्धारित कार्य घंटों के संदर्भ में बुनियादी ढांचे के मामले में अभी भी बेहतर स्थिति में हैं।’’ श्रीनिवास ने कहा कि हालांकि चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुविधा के लिए परिवेश तंत्र उन्नत होना चाहिए। उन्होंने कहा ‘‘पिछले कुछ समय में जो हुआ है वह यह है कि ज्यादातर मेडिकल संस्थानों का विस्तार अस्पताल की तरफ हुआ है लेकिन छात्रावास की तरफ नहीं। इसलिए पिछले पांच से दस साल में कुछ संस्थानों में असंतुलन की स्थिति बनी है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है।’’ चिकित्सा संस्थानों के समग्र विस्तार की अनदेखी की ओर इशारा करते हुए डॉ श्रीनिवास ने कहा ‘‘हम (अब तक) रोगी देखभाल और सेवाओं से भावनात्मक रूप से जुड़े थे।’’ डॉक्टरों की लंबी ड्यूटी के मुद्दे पर जो 24 घंटे और कभी-कभी 36 घंटे तक भी हो जाती है उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने डॉक्टरों के काम के घंटों के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि एम्स दिल्ली समेत कई संस्थानों ने इसे लगभग लागू कर दिया है और सब एनएमसी की सिफारिश पर एकमत हैं। श्रीनिवास ने कहा ‘‘दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे नियम हैं जिनके तहत चिकित्सकों को लगातार या हफ्ते में एक निश्चित अवधि से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। अगर आप मुझसे पूछें तो निश्चित रूप से काम के घंटों की संख्या सीमित होनी चाहिए चाहे वह लगातार हो या हफ्ते में और काम के बाद की छुट्टियों के संबंध में हो। हम इसके बारे में सचेत हैं।’’ उन्होंने कहा ‘‘जहां तक चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता की बात है तो यदि कामकाजी घंटे एक सीमा से अधिक होते हैं तो निश्चित रूप से इसका गुणवत्ता पर भी कुछ असर पड़ेगा।’’ एम्स निदेशक ने स्वीकार किया कि कल्याणकारी उपायों और कार्यस्थल पर स्वास्थ्य पेशेवरों को आरामदायक माहौल प्रदान करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। इनमें हर समय भोजन ड्यूटी रूम की उपलब्धता पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था न होने की स्थिति में संस्थान के भीतर आवागमन और सुरक्षा उपलब्ध होना शामिल है। डॉ श्रीनिवास ने जोर देते हुए कहा कि संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए बहुपक्षीय पहल अपनाए जाने की जरूरत है। एम्स-दिल्ली के निदेशक ने कहा एक परिवेश तंत्र विकसित किया जाना चाहिए ताकि वे (डॉक्टर) सहज हों। हमने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। मुझे लगता है कि हम रोगी देखभाल सेवाओं में ही उलझे रहे और डॉक्टरों नर्सों और अस्पताल के कर्मचारियों की आवश्यकताओं पर कभी ध्यान नहीं दिया। हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बड़े अस्पतालों के लिए यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन एम्स या बड़े संस्थानों में कल्याण और सुरक्षा उपायों से संबंधित अधिकतर प्रणालियाँ मौजूद हैं। डॉ. श्रीनिवास ने कहा हमें एक अच्छा संतुलन बनाने की जरूरत है… चाहे आप इसे हवाई अड्डे या किले जैसा बनाना चाहते हों या आप चाहते हों कि मरीज आपके पास आएं और बिना किसी बाधा के आपसे खुलकर बात करें। रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा हाल ही में किए गए विरोध और हड़ताल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी मांगें जायज हैं। उन्होंने कहा कोई व्यक्ति ड्यूटी रूम सुरक्षित कार्यस्थल क्षेत्र कार्य के सीमित घंटे ड्यूटी के बाद छुट्टी मेस सुविधा और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मरीजों के तीमारदार उन पर (डॉक्टरों पर) हमला न करें। डॉ. श्रीनिवास ने कहा जब डॉक्टर रात की ड्यूटी पर या विस्तारित ड्यूटी पर होते हैं… तो मरीज के तीमारदारों को आकर उन पर हमला नहीं करना चाहिए। लेकिन हम किस तरह का परिवेश तंत्र बनाते हैं यह प्रत्येक अस्पताल पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि जब चीजें गलत हो जाती हैं किसी मरीज की हालत खराब हो जाती है या उसकी मृत्यु हो जाती है तो अचानक न केवल उस मरीज के तीमारदार बल्कि अन्य लोग भी डॉक्टरों पर हमला करते हैं। डॉ. श्रीनिवास ने कहा यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां सुरक्षा की जरूरत है। (हमें) उस स्तर पर किसी व्यक्ति की जरूरत है – एक वरिष्ठ व्यक्ति या चिकित्सा-सामाजिक कार्यकर्ता – जो तीमारदारों से बात करे और उन्हें शांत करे। उन्होंने कहा ‘‘चिकित्सक भगवान नहीं होते। जटिल स्थितियां होंगी लोगों की मौत होगी लेकिन लापरवाही नहीं होनी चाहिए।’’क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडियाफोटो क्रेडिट : Wikimedia common

%d bloggers like this: