एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी, वे स्थिति को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे: बीरेन सिंह

इंफाल, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (ईजीआई) पर राज्य में संघर्ष भड़काने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए सोमवार को कहा कि उनकी सरकार ने संस्था के अध्यक्ष तथा तीन सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

             सिंह ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब राज्य में कई लोग मारे गये हैं और कई बेघर हो गये हैं, ऐसे में ईजीआई ने मणिपुर के सामने मौजूद संकट की जटिलता, पृष्ठभूमि और राज्य के इतिहास को समझे बिना ‘पूरी तरह एकतरफा’ रिपोर्ट प्रकाशित की। एडिटर्स गिल्ड ने पिछले सप्ताह प्रकाशित एक रिपोर्ट में मणिपुर में मीडिया कवरेज की आलोचना की थी। गिल्ड ने दावा किया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया में आयी खबरें एकतरफा हैं। इसके साथ ही उसने राज्य नेतृत्व पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप भी लगाया था।

             सिंह ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की है, जो मणिपुर राज्य में स्थिति को और बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।’’जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है उनमें एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा और तीन सदस्य – सीमा गुहा, भारत भूषण तथा संजय कपूर शामिल हैं।गुहा, भूषण और कपूर ने जातीय हिंसा पर मीडिया रिपोर्ताज का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने 7 से 10 तारीख के बीच राज्य का दौरा किया था।

             मुख्यमंत्री ने दावा किया, ‘‘वे राज्य विरोधी, राष्ट्र विरोधी और जनता विरोधी हैं और जहर उगलने आये थे। अगर मुझे पहले पता होता तो उन्हें प्रवेश नहीं करने देता।’’ ईजीआई ने शनिवार को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उसे कई ज्ञापन मिले हैं जिनमें कहा गया है कि मणिपुर में मीडिया मेइती और कुकु-चिन समुदायों के बीच जातीय संघर्ष पर भेदभावपूर्ण भूमिका अपना रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि राज्य का नेतृत्व संघर्ष के दौरान भेदभावपूर्ण हो गया। उसे जातीय संघर्ष में पक्षपात से बचना चाहिए था लेकिन वह लोकतांत्रिक सरकार के रूप में अपना कर्तव्य नहीं निभा सका।’’ गिल्ड ने कहा कि सामान्य परिस्थिति में पत्रकारों की रिपोर्ट को उनके संपादकों या ब्यूरो प्रमुखों द्वारा स्थानीय पुलिस, प्रशासन और सुरक्षा बलों से जांचा जाता है लेकिन संघर्ष के दौरान यह संभव नहीं था।

             रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इंटरनेट प्रतिबंध ने चीजों को और बिगाड़ दिया। सरकार द्वारा संचार ठप करने से पत्रकारिता पर प्रतिकूल असर पड़ा क्योंकि उसने पत्रकारों को एक दूसरे के साथ, संपादकों के साथ और उनके स्रोतों के साथ संवाद की उनकी क्षमता को सीधे सीधे प्रभावित किया।’’

             ईजीआई ने दावा किया है कि राज्य नेतृत्व के सदस्यों ने कुकी-जो आदिवासियों को बिना प्रामाणिक आंकड़ों या साक्ष्यों के ‘अवैध प्रवासी’ और ‘विदेशी’ करार दिया। सिंह ने कहा, ‘‘मैं एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों को यह चेतावनी भी देता हूं कि यदि आप कुछ करना चाहते हैं तो कृपया मौके पर आएं, जमीनी हकीकत देखें, सभी समुदायों के प्रतिनिधियों, सभी पीड़ितों से मिलें और जो देखें, उसे प्रकाशित करें। अन्यथा, समाज के कुछ वर्गों से ही मिलना और निष्कर्ष पर पहुंच जाना-यह नुकसानदेह और निंदनीय है।’’

             उन्होंने कहा कि यह दावा सच नहीं है कि केवल एक समुदाय को घरों से निकालने की कार्रवाई की गयी।

             मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि किसी ने उस ‘मां’ के बारे एक शब्द नहीं कहा, जिसने निर्वस्त्र महिलाओं को कपड़े दिये थे और घर भेजा था। सिंह ने आरोप लगाया कि राजस्थान और पश्चिम बंगाल में इसी तरह की घटनाओं पर कोई कुछ नहीं कह रहा। उन्होंने कहा कि राज्य में चिह्नित अवैध प्रवासियों का बायोमेट्रिक डेटा एकत्रित करने की प्रक्रिया जारी है। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘केंद्र ने हमसे सितंबर तक प्रक्रिया पूरी करने को कहा था लेकिन हमने एक वर्ष का समय और मांगा है क्योंकि हमें और गांवों में पता लगाना है।’’ सिंह ने कहा कि कुकी इन्पी मणिपुर के नेता के. हाओकिप के खिलाफ इस कथित घोषणा के लिए प्राथमिकी दर्ज की गयी है कि जब तक राजनीतिक समाधान नहीं निकल जाता, कोई मेइती भारत-म्यांमा सीमा पर स्थित मोरेह कस्बे में नहीं घुस सकता।

             ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड मणिपुर ने भी ‘कहे-सुने के आधार पर आरोपों’ के लिए ईजीआई की आलोचना की है। क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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