दुनिया का पहला मलेरिया रोधी टीका अफ्रीकी देशों में लगाने की तैयारी

ब्लांटायर (मलावी), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तीन अफ्रीकी देशों में दुनिया का पहला अधिकृत मलेरिया रोधी टीका लगाने की घोषणा की है। लेकिन इस टीके के मूल्य को लेकर इसके सबसे बड़े समर्थक बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने चिंता जताते हुए इस टीकाकरण कार्यक्रम को वित्तीय समर्थन नहीं देने का फैसला लिया है।

डब्ल्यूएचओ ने इस टीके को मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक ‘ऐतिहासिक’ सफलता करार दिया है, लेकिन बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इस सप्ताह एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि वह अब इस टीके को वित्तीय समर्थन नहीं देगा।

कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि वे फाउंडेशन के इस निर्णय से निराश हैं। उन्होंने आगाह किया कि इससे लाखों अफ्रीकी बच्चों की मलेरिया के कारण मौत हो सकती है। साथ ही यह निर्णय जन स्वास्थ्य में आने वाली समस्याओं को सुलझाने के भविष्य के प्रयासों को कमजोर कर सकता है।

ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) का ‘मॉस्कीरिक्स’ नामक टीका लगभग 30 प्रतिशत प्रभावी है और इसकी चार खुराक लेनी होती हैं।

गेट्स फाउंडेशन के मलेरिया से संबंधित कार्यक्रमों के निदेशक फिलिप वेल्कहॉफ ने कहा कि मलेरिया टीके की ‘प्रभावकारिता जितनी हम चाहते थे, उससे काफी कम है।’

टीके पर 20 करोड़ डॉलर खर्च करने और इसे बाजार में लाने के लिए कई दशक लगाने के बाद इससे हाथ खींचने के गेट्स फाउंडेशन के फैसले के बारे में विस्तार से बताते हुए वेल्कहॉफ ने कहा कि टीका अपेक्षाकृत महंगा है और इसकी आपूर्ति चुनौतीपूर्ण है।

उन्होंने कहा, ‘यदि हम अपने वर्तमान वित्तपोषण के जरिये ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाना चाहते हैं, तो कीमत और प्रभावकारिता महत्व रखती है।’

वेल्कहॉफ ने कहा कि अफ्रीका में टीकाकरण का समर्थन करने से पीछे हटने का गेट्स फाउंडेशन का निर्णय विस्तृत विचार-विमर्श के बाद वर्षों पहले किया गया था। इस बात पर भी चर्चा की गई थी कि क्या फाउंडेशन का पैसा मलेरिया के अन्य टीकों, उपचारों या उत्पादन क्षमता पर बेहतर ढंग से खर्च किया जा सकता है।

लीवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में बायोलॉजिकल साइंस के डीन एलिस्टर क्रेग ने कहा, ‘यह दुनिया का कोई बहुत बड़ा टीका नहीं है, लेकिन इसके इस्तेमाल से बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।’

क्रेग ने कहा, ‘ऐसा भी नहीं है कि हमारे पास बहुत से अन्य विकल्प मौजूद हैं। लगभग पांच वर्षों में एक और टीके को मंजूरी दी जा सकती है। लेकिन अगर हम तब तक प्रतीक्षा करते हैं तो बहुत से लोगों की जान जा सकती है।’

क्रेग ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किए जा रहे एक टीके का जिक्र करते हुए कहा कि बायोएनटेक जिस मलेरिया रोधी टीके को विकसित कर रही है, वह ‘मैसेंजर आरएनए’ तकनीक पर आधारित होगा, लेकिन यह परियोजना अभी प्रारंभिक अवस्था में है।

मलेरिया रोधी टीके की राह में एक और बड़ी बाधा उपलब्धता है। जीएसके का कहना है कि वह 2028 तक प्रति वर्ष केवल डेढ़ करोड़ खुराक का उत्पादन कर सकता है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि हर साल अफ्रीका में पैदा होने वाले ढाई करोड़ बच्चों की रक्षा के लिए हर साल कम से कम 10 करोड़ खुराक की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि इस तकनीक को एक भारतीय दवा निर्माता को हस्तांतरित करने की योजना है, लेकिन किसी भी खुराक के उत्पादन में वर्षों लग जाएंगे।

गेट्स फाउंडेशन के वेल्कहॉफ ने कहा कि दुनिया का सारा पैसा भी टीके की अल्पकालिक आपूर्ति से जुड़ी बाधाओं को कम नहीं कर सकेगा। उन्होंने कहा कि गेट्स फाउंडेशन वैक्सीन गठबंधन ‘गावी’ का समर्थन करना जारी रखे हुए है, जो तीन अफ्रीकी देशों घाना, केन्या और मलावी में शुरू में टीका उपलब्ध कराने के लिए लगभग 15.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश कर रहा है।

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. डेविड शेलेनबर्ग ने कहा कि गेट्स फाउंडेशन द्वारा मलेरिया के टीके के लिए वित्तीय सहायता वापस लेने से अन्य लोग परेशान हो सकते हैं।

शेलेनबर्ग ने कहा कि हमारे पास कोई जादू की गोली नहीं है, लेकिन हम अपने पास मौजूद उपकरणों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. डायन विर्थ ने कहा कि अपूर्ण टीकाकरण से भी लोगों की जान बच सकती है।

विर्थ ने कहा, ‘‘हम 10 करोड़ खुराक लेना पसंद करेंगे, लेकिन मलेरिया के लिए उस तरह का पैसा मौजूद नहीं है।’’ विर्थ ने कहा कि गेट्स फाउंडेशन ने टीका को बाजार में लाकर अपनी भूमिका निभा दी। अब यह देशों, दाताओं और अन्य स्वास्थ्य संगठनों पर निर्भर करता है कि वह इसका उपयोग सुनिश्चित करें।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Associated Press (AP)

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