दुस्साहस वह नहीं है जो हमारे साथ होता है, हम इस पर कैसे प्रतिक्रिया दें

जैसा कि सभी जानते हैं कि जीवन में अच्छा और बुरा, सुख-दुख जीवन में साथ-साथ चलते हैं भले ही हम दावा करते हैं कि हम खुश है परंतु वास्तव में ऐसा होता नहीं है। हम अक्सर कई बार चीजों और जीवन के तरीकों को अपने तरीके से अपनाते हैं परंतु हमें पता नहीं होता कि हम दुख को आमंत्रित कर रहे हैं और फिर उसके द्वारा हुए कष्टों को सहन करते हैं। कई बार हम इसके बारे में विचार करते हैं कि दुख हमारे आसपास के प्रभावों का परिणाम है हालांकि हमारे जीवन में दुख एक महत्वपूर्ण हिसा तो हमारे अंदर से उत्पन्न होता है।

जीवन में हमें शक्ति का अहसास तब होता है जब हम देखते हैं कि हमारी भावनात्मक स्थिति दूसरों को प्रभावित कर सकती है और यही विभिन्न शिष्टाचारों में व्यक्त हो जाती है। यह हमारे रोजमर्रा के जीवन की सच्चाई को व्यक्त करने का एक साधन है जब हम दुखी होते हैं तो हमें कोई उम्मीद नहीं होती और हम निराश हो जाते हैं क्योंकि हम पहले से ही उन्हें अप्रिय होने का अनुमान लगा लेते हैं परंतु चीजें इतनी भयानक नहीं होती, यह हमारे देखने का नजरिया हो सकता है लेकिन यह निश्चित रूप से भविष्य में हमें अनेक मुद्दों की तरफ ले जाता है।

कुछ आदतें इंसान को दुखी करती हैं जैसे सबसे पहले जीवन में दुखी और दयनीय होना उदासीनता है जो हमारे दृष्टिकोण को विकृत करता है जबकि हम अपने दुख के कारण संकोची या अनुभवी महसूस कर सकते हैं, हम वास्तव में आत्मा से बंधे होते हैं खुद को ऐसी दुनिया में परेशान, दुखी व्यक्ति प्रत्याशित करना जो पहले से ही प्रर्याप्त से अधिक है।

प्रत्येक व्यक्ति का दुख समान नहीं होता सब अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार होता है जैसे एक गरीब व्यक्ति किस दुख से पीड़ित है और एक सुदृढ़ व्यक्ति जिसका समाज में एक अलग ही रूतबा होता है लेकिन सब इससे उबरने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं कि कैसे हम इससे बाहर आएं।

दूसरे अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद तनाव से निपटने के लिए भिन्न-भिन्न तरीके निकालते हैं और महसूस करते हैं कि कुछ चीजें हमारे जीवन में अच्छे तरीके से काम नहीं कर रही है। हमारे आसपास के व्यक्तियों और चीजों पर हमारी निराशावादी आशंका अपना दबाव बना लेती है। हालांकि इसमें हमें अलग करने और हमें बहुत दुखी करने का एक अजीब सा तरीका होता है।

दुखी व्यक्तियों को अक्सर वित्तीय नुकसान एक सीमा तक तय किया जाता है या जैसा वह दिखाना चाह रहे हैं। वे इस डर पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जीवन में प्राथमिकता बनाकर लगातार इस बारे में सोचते हैं कि वह अंदर से कितने कमजोर हो चुके हैं भले ही वह दिवालिया न हों।

दुख विकटता उत्पन्न करता है और एक दुखी व्यक्ति यह मानना पसंद करता है कि उसके आसपास के सभी लोग दुखी हैं भले ही वह क्या कार्य कर रहे हैं या उनकी क्या प्रेरणाएं हैं वे उनसे ज्यादा उम्मीद रखते हैं।

मनहूसियत लोगों को स्वार्थी बना देती है और ऐसे लोग केवल एक चीज के इर्द-गिर्द केंद्रित होते हैं जहां पर इनका फायदा होता है और अंत में दुखी व्यक्तियों को अपने जीवन में सकारात्मकता का एक लम्हा याद आता है क्योंकि वे दुनियाभर में हर चीज पर ध्यान लगाने में व्यस्त हैं भले ही इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है, वे अपने और दूसरे के आचरण, आकाश में तारों और ग्रहों की चाल के तरीके की जांच करेंगे। एक दुखी व्यक्ति के लिए सब कुछ एक बोझ माना जाता है और जितना अधिक वह सुस्त होता जाता है वह उतना ही भयावह हो जाता है।

इस प्रकार जब हम परिस्थितियों में सकारात्मक गुणों को देखने के लिए अत्यधिक आलोचनात्मक, नकारात्मकता देखते है तो हम उन चीजों को दूर कर देते हैं जो कई बार हमारे लिए बहुत मायने रखती है। इसलिए यह आंकलन करना अति आवश्यक है कि वास्तव में हम कौन हैं। बौद्ध धर्म के पहले महान सत्य ने कहा था कि ‘दुख अपरिहार्य’ है एवं सभी जीवित प्राणी अपने तरीके से संघर्ष करते हैं जब तक कि वे मर नहीं जाते। इस चक्र से बचना असंभव है लेकिन अगर हम इस प्रक्रिया में शांति से विचार करें तो कठिन कार्य करने में भी सक्षम हो जाते हैं।

जीवन में हमें चीजों के प्रति हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए और हर प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए दुख-सुख को स्वीकार करना चाहिए इससे ज्यादा खुशी और कोई हो नहीं सकती। यह इंसान के व्यक्तित्व को सुदृढ़ कर उसके जीवन को हमेशा के लिए बदल सकता है। जीने का वास्तविक आनंद अनुभव करने और सकारात्मक जीवन जीने के लिए व्यक्ति को अपने अंदर की भावनाओं का अनुभव करना चाहिए क्योंकि अक्सर दुख कई अन्य नकारात्मक भावनाएं अतीत या भविष्य के संबंध में होती है इसके प्रति सही दृष्टिकोण ही जीवन में खुशी की कुंजी है।

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