देश में निर्माण होने पर जनहित याचिकाएं क्यों दायर की जाती हैं: शीर्ष अदालत हैरान

नयी दिल्ली, विकास और पारिस्थितिकी संतुलन को महत्वपूर्ण बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को इस बात पर हैरानी जतायी कि जब राजमार्ग जैसी ढांचागत परियोजनाएं शुरू की जाती हैं तो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) क्यों दायर की जाती हैं शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी गोवा में तिनैघाट-वास्को डी गामा मार्ग के वास्को डी गामा-कुलेम खंड पर रेलवे पटरियों के दोहरीकरण से जुड़े निर्माण कार्य पर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा ‘‘हम केवल यह सोच रहे हैं कि ऐसा केवल इस देश में ही क्यों होता है कि जब आप हिमाचल प्रदेश में सड़क बनाना शुरू करते हैं तो जनहित याचिकाएं आ जाती हैं। जब आप राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग बनाना शुरू करते हैं तो जनहित याचिकाएं आ जाती हैं।’’ पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा ‘‘आप हमें एक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बताएं जहां रेलवे की सुविधा नहीं है।’’ पीठ ने कहा ‘‘आल्प्स पर्वत पर जाएं और वे आपको ट्रेन में बर्फ के बीच से ले जाएंगे।’’ शीर्ष अदालत बंबई उच्च न्यायालय की गोवा पीठ के अगस्त 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने रेलवे पटरी के दोहरीकरण के निर्माण से संबंधित एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में आरोप लगाया था कि निर्माण कार्य वर्ष 2011 के तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना गोवा सिंचाई अधिनियम-1973 गोवा पंचायत राज अधिनियम-1994 और गोवा शहर एवं नगर नियोजन कानून के तहत पूर्व अनुमति प्राप्त करने के वैधानिक आदेश का उल्लंघन करके किया जा रहा था। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि यह परियोजना गोवा में रेलवे नेटवर्क को मजबूत करेगी और सड़क परिवहन पर बोझ को कम करने में मदद करेगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने अनियोजित विकास के खतरों पर प्रकाश डालते हुए केरल के वायनाड जिले की हालिया घटना का जिक्र किया जहां भूस्खलन ने 195 लोगों की जान ले ली। गोवा में रेलवे लाइन परियोजना पर पीठ ने कहा कि विशेषज्ञ हैं जो हर चीज की जांच करेंगे। वकील ने कहा कि रेलवे लाइन पारिस्थितिकीय रूप से नाजुक क्षेत्र से होकर गुजरती है और याचिका को विकास विरोधी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा ‘‘विकास और पारिस्थितिकी संतुलन साथ-साथ चलने चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है। कोई भी अंधाधुंध विकास की इजाजत नहीं दे सकता। आखिरकार हम कानून के शासन द्वारा शासित हैं।’’ पीठ ने वकील से कहा कि किसी बात को लेकर कोई अस्तित्वहीन या भ्रामक आशंका नहीं होनी चाहिए। जब वकील ने तर्क दिया कि गोवा की तटरेखा पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र है तो पीठ ने कहा ‘‘आपका अंतिम तर्क यह है कि वहां रेलवे लाइन नहीं होनी चाहिए… जब शानदार वाहनों में लोग वहां जाते हैं तो आपको कोई समस्या नहीं होती। उनके पास आलीशान बंगले हैं उनके पास बहुत सारी गाड़ियां हैं लेकिन आपको कोई दिक्कत नहीं है।’’ शीर्ष अदालत ने इसके बाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया।क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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