नेहरू के दौर को ‘महान’ मानने की सोच से बाहर निकलने की जरूरत : जयशंकर

नयी दिल्ली, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ प्रमुख निर्णयों की आलोचना करते हुए बुधवार को कहा कि इस सोच से बाहर निकलने की जरूरत है कि 1946 से शुरू हुआ दौर ‘‘महान वर्षों’’ का था और देश ने इस दौरान शानदार प्रदर्शन किया। ‘न्यूज18 राइजिंग भारत समिट’ में एक सत्र के दौरान एक सवाल पर जयशंकर ने कहा कि शुरुआती वर्षों में विदेश नीति काफी हद तक ‘‘नेहरूवादी वैचारिक बुलबुला’’ थी और ‘‘इसके अवशेष आज भी जारी हैं।’’

जयशंकर ने जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत की भूमिका, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लेकर आलोचना, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने तथा वर्तमान संदर्भ और भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान संबंधों जैसे कई मुद्दों पर बात की। आजादी के बाद शुरुआती वर्षों में सरकार की विदेश नीति के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा, ‘‘आपने पाकिस्तान को गलत पाया, आपने चीन को गलत पाया, आपने अमेरिका को सही पाया और हमारी विदेश नीति बहुत अच्छी थी। इसलिए, इसे एक तरफ रख दें।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं 2024 के फायदे के लिए आज यह नहीं कह रहा। 1954 या 1950 पर गौर करें। मैं कहता हूं कि 1948, 1949, 1950, 1951, 1952 में जब निर्णय लिए जा रहे थे, तब कोई खड़ा होकर कह रहा था ‘श्री नेहरू, आप क्या कर रहे हैं, क्या आपने इसके इस पहलू पर ध्यान दिया है?’ ये नेहरू के समकालीन थे जो नेहरू द्वारा उस समय लिए जा रहे निर्णयों पर सवाल उठा रहे थे।’’

जयशंकर ने अपने दावे के समर्थन में नेहरू-लियाकत समझौते पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों और नेहरू के फैसलों पर भीम राव आंबेडकर के विचारों का हवाला दिया।  उन्होंने कहा, ‘‘तो, यह दूरदर्शिता नहीं थी, यह कोई राजनीतिक विवाद नहीं है। मैं युवा पीढ़ी के सामने ऐतिहासिक स्थिति का जिक्र कर रहा हूं, जिसे मैंने ‘सड़क नहीं ली गई’ कहा था, वह सड़क उपलब्ध थी और उस सड़क को चिह्नित किया गया था।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘अब, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वे नासमझ थे। इसमें फायदे और नुकसान हैं, लेकिन हमें इसका महिमामंडन करने से बाहर निकलने की जरूरत है कि 1946 से लेकर अब तक…चाहें कोई भी साल चुन लें….कि ये महान साल थे, और हमने शानदार ढंग से काम किया और अगर कुछ भी गलत हुआ, तो अन्य लोगों को दोषी ठहराया जाएगा।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या आज भारत को दो मोर्चे वाली स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा है, उन्होंने कहा, ‘‘हम…हमेशा से इस (स्थिति) में रहे हैं। हम ही इससे इनकार करते रहे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कंपनियों का ऑडिट किया जाता है। देश का भी ऑडिट होना चाहिए, नीतियों का ऑडिट होना चाहिए। लोगों को खुले दिमाग और आलोचनात्मक तरीके से गौर करना चाहिए कि अतीत में क्या हुआ।’’

जयशंकर ने यह भी कहा कि पिछले 10 साल पर चर्चा हो तो उन्हें खुशी होगी। उन्होंने तर्क दिया कि आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में ‘‘यह बिल्कुल नेहरूवादी विचारधारा का बुलबुला था। नेहरू अमेरिका के खिलाफ थे, इसलिए हर कोई अमेरिका के खिलाफ था। नेहरू ने कहा कि चीन एक महान मित्र है, सभी ने कहा कि चीन महान मित्र है। इसलिए, उसके अवशेष आज भी मिलते हैं।’’

पाकिस्तान के साथ संबंधों पर उन्होंने कहा कि औपचारिक रूप से अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध ‘‘बहुत कम’’ हैं। जयशंकर ने कहा कि ऐसा दो कारणों से हुआ, एक तो इसलिए कि भारत ने निष्पक्ष रूप से ‘‘आतंकवाद को संबंधों के केंद्र में रखा है।’’ उन्होंने कहा कि दूसरा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के ‘‘लंबे समय से प्रतीक्षित फैसले’’ पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘विपक्ष हमसे क्या चाहता था, (अनुच्छेद) 370 (निरस्त) न करें, क्योंकि इससे पाकिस्तान परेशान हो जाएगा। या पाकिस्तान से बात करें, इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि वे आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं। वास्तव में, विपक्ष यही कर भी रहा था।’’

उन्होंने अमेरिका और दुनिया के अन्य हिस्सों से की जा रही सीएए की आलोचना का भी जवाब दिया। जयशंकर ने कहा कि सीएए विभाजन के समय ‘‘इतिहास के गलत पक्ष में फंसे लोगों के लिए न्यायसंगत और निष्पक्ष’’ होने के बारे में है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप इन लोगों की दुर्दशा को देखें, तो ये राष्ट्रविहीन लोग हैं… बिना किसी गलती के राष्ट्रविहीन, क्योंकि एक खास दौर के नेताओं ने इसे गलत पाया।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘कोई गलत को सही कर रहा है, वे किसी के साथ गलत नहीं कर रहे हैं। वे वास्तव में उस स्थिति को सही कर रहे हैं जिसमें कई लोगों के साथ गलत हुआ।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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