भारत के ‘आदित्य-एल1’ अंतरिक्ष यान ने वैज्ञानिक आंकड़े जुटाने शुरू किए

बेंगलुरु, भारत के ‘आदित्य एल-1’ सूर्य मिशन अंतरिक्ष यान ने आंकड़े जुटाने शुरू कर दिए हैं, जो पृथ्वी के चारों ओर मौजूद कणों के व्यवहार के विश्लेषण में वैज्ञानिकों की मदद करेंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को यह जानकारी दी। इसरो ने कहा, ”भारत की पहली सौर वेधशाला में लगे सेंसरों ने पृथ्वी से 50 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर आयन और इलेक्ट्रॉन को मापना शुरू कर दिया है।”

             राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ”ये आंकड़े पृथ्वी के चारों ओर मौजूद कणों के व्यवहार के विश्लेषण में वैज्ञानिकों की मदद करेंगे।”

            ‘सुप्रा थर्मल एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर’ (एसटीईपीएस) उपकरण ‘आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्पेरिमेंट’ अंतरिक्ष उपकरण का एक हिस्सा है।

            इसरो ने कहा, ”जैसे-जैसे आदित्य एल-1 सू्र्य-पृथ्वी के बीच मौजूद एल1 बिंदु की ओर आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे एसटीईपीएस की यह माप अंतरिक्ष यान मिशन के ‘क्रूज फेज’ के दौरान भी जारी रहेगी। अंतरिक्ष यान के अपनी इच्छित कक्षा में स्थापित होने के बाद भी यह जारी रहेगा।”

            इसने कहा, ”एल-1 के आसपास जुटाए गए आंकड़ों से सौर वायु की उत्पति, इसकी गति और अंतरिक्ष मौसम से संबंधित चीजों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी।”एसटीईपीएस को अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के सहयोग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला द्वारा तैयार किया गया है।

            इसमें छह सेंसर लगे हुए हैं, जो अलग-अलग दिशाओं में अवलोकन कर रहे हैं और एक मेगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (एमईवी) से अधिक के इलेक्ट्रॉन के अलावा, 20 किलोइलेक्ट्रॉन वोल्ट (केईवी) /न्यूक्लियॉन से लेकर पांच एमईवी/न्यूक्लियॉन तक के ‘सुपर-थर्मल’ और शक्तिशाली आयनों को माप रहे हैं। पृथ्वी की कक्षाओं के दौरान के आंकड़ों से वैज्ञानिकों को पृथ्वी के चारों ओर, विशेष रूप से इसके चुंबकीय क्षेत्र में मौजूद कणों के व्यवहार का विश्लेषण करने में मदद मिलेगी।

            एसटीईपीएस, पृथ्वी से 50 हजार किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर 10 सितंबर को सक्रिय हुआ था। यह दूरी पृथ्वी की त्रिज्या के आठ गुना से भी अधिक है।  इसरो ने गत दो सितंबर को पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के जरिए ‘आदित्य-एल1’ का प्रक्षेपण किया था जिसे पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंजियन’ बिंदु-1 (एल1) पर प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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