नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें उसने एक आरोपी को भ्रष्टाचार के मामले में बरी किया था और कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध ‘‘समाज के खिलाफ अपराध’’ हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी को बरी करते समय रिकॉर्ड में सबूतों पर विस्तारपूर्वक फिर से गौर नहीं किया गया। न्यायालय ने कहा कि मामला उच्च न्यायालय में इसके लिए वापस भेजे जाने के योग्य है ताकि वह इस पर कानून के अनुसार नए सिरे से विचार करे।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को यह ध्यान में रखना चाहिए था कि वह भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराधों से निपट रहा है जो समाज के खिलाफ अपराध है। इसलिए, उच्च न्यायालय को अधिक सावधान रहना चाहिए और विस्तार से गौर करना चाहिए था। उच्च न्यायालय ने अपील का जिस तरह से निपटारा किया उससे हम सहमत नहीं हैं।’’
उसने कहा, ‘‘आरोपी को अधिनियम के तहत अपराध के लिए बरी करने के उच्च न्यायालय द्वारा 12 जनवरी, 2015 को पारित फैसले और आदेश को खारिज किया जाता है।’’
पीठ में न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह शामिल थे। पीठ ने यह फैसला उच्च न्यायालय के जनवरी 2015 के फैसले के खिलाफ गुजरात राज्य द्वारा दायर अपील पर सुनाया।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए आरोपी को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध से बरी किया था।
निचली अदालत ने आरोपी को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराध का दोषी ठहराया था जो आईटीआई गांधी नगर में सहायक निदेशक के तौर पर काम करता है। अदालत ने उस पर 10,000 रुपये का जुर्माने के साथ उसे पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया