राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है : न्यायालय

नयी दिल्ली,  उच्चतम न्यायालय ने कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है और संविधान के तहत राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है। इस फैसले से झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि उन्होंने उच्चतम न्यायालय से केंद्र द्वारा खदानों और खनिजों पर अब तक लगाए गए हजारों करोड़ रुपये के करों की वसूली पर फैसला करने का आग्रह किया था।

             राज्यों ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि केंद्र से करों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया जाए। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हालांकि दलीलों का कड़ा विरोध किया।

             प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र और राज्यों से इस पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा और कहा कि वह 31 जुलाई को इस मुद्दे पर फैसला करेगी।          

             उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि खनिजों पर देय ‘रॉयल्टी’ कर नहीं है।  प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने और पीठ के सात न्यायाधीशों के फैसले को पढ़ा जिसमें कहा गया कि संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है।

             बहुमत के फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया वह फैसला सही नहीं है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर ‘रॉयल्टी’ कर है।

             रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को देता है। प्रविष्टि 49 के अंतर्गत  राज्यों को भूमि और भवनों पर कर लगाने का अधिकार है  जबकि प्रविष्टि 50 राज्यों को खनिज विकास पर कर लगाने की अनुमति देता है  लेकिन यह खनिज विकास से संबंधित संसद द्वारा कानून के तहत लगाई गई किसी भी सीमा के अधीन है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआर)  1957 राज्य को खदानों एवं खनिजों पर कर लगाने से प्रतिबंधित नहीं करता है।

             पीठ ने कहा  ‘‘एमएमडीआर अधिनियम में राज्य की कर लगाने की शक्तियों पर सीमाएं लगाने वाला कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है। एमएमडीआरए के तहत रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है।’’ इसने कहा  ‘‘राज्यों के पास खदानों  खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है।’’ शुरू में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने दो अलग-अलग फैसले दिए हैं और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण फैसला दिया है।

             न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राज्यों के पास खदानों तथा खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार नहीं है। प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय  न्यायमूर्ति अभय एस. ओका  न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला  न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा  न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां  न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।

             पीठ ने इन विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाया कि क्या खनिजों पर देय ‘रॉयल्टी’ खान तथा खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के तहत कर है। क्या केवल केंद्र को ही ऐसा कर लेने का अधिकार है या राज्यों को भी अपने क्षेत्र में खनिज युक्त भूमि पर कर लेने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस जटिल मामले की सुनवाई 27 फरवरी को शुरू की थी  क्योंकि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के दो विरोधाभासी फैसले थे।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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