सीजेआई जैसे संवैधानिक पदों की स्वयंभू योद्धा आलोचना नहीं कर सकते: दिल्ली उच्च न्यायालय

नयी दिल्ली, भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि संवैधानिक पदाधिकारियों के पदों की सतही आरोपों के आधार पर जनहित में स्वयंभू योद्धाओं द्वारा आलोचना नहीं की जा सकती।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह याचिका संदेहों, अनुमानों, इच्छा के अनुसार सोच पर आधारित है तथा संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ है। यह जनहित याचिका 11 नवंबर को खारिज की गई थी और विस्तृत आदेश मंगलवार को उपलब्ध कराया गया।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानपूर्ण आरोप लगा कर अदालत का रुख करना एक चलन हो गया है।’’ अदालत ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति के विषय में संविधान के अनुच्छेद 124 का पालन किया गया।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 नवंबर को याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता संजीव कुमार तिवारी पर एक लाख रुपये का अदालत खर्च भी लगाया। याचिका न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सीजेआई के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ दायर की गई थी।

ग्राम उदय फाउंडेशन नाम के संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि सीजेआई की नियुक्ति संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है।

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को जारी 12 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा कि याचिका प्रचार पाने के लिए दायर की गई थी तथा यह कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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