हमारी नदियों और झीलों का डीएनए विश्लेषण उनकी जैव विविधता के बारे में नए रहस्यों को उजागर कर सकता है

बांगोर (ब्रिटेन),  मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक दुनिया की जीवनरेखा हैं  फिर भी वह संकट का सामना कर रहा है। विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की 2022 की रिपोर्ट से पता चला है कि 1970 के बाद से वैश्विक मीठे पानी की कशेरुकी आबादी में 83 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है  जो किसी भी अन्य आवास की तुलना में कहीं अधिक है।

             मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक उपसमूह हैं। इनमें झीलें  तालाब  नदियां  धाराएं  झरने  दलदल और आर्द्रभूमि शामिल हैं। उनकी तुलना समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों से की जा सकती है  जिनमें नमक की मात्रा अधिक होती है। मीठे पानी के आवासों को तापमान  पोषक तत्वों और वनस्पति सहित विभिन्न कारकों द्वारा वर्गीकृत किया जा सकता है।  प्रकृति के क्षरण का स्तर चिंताजनक है  लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र जटिल है। साथ ही मानवीय गतिविधियों के प्रभाव भी जटिल हैं।

             हमारे शोध से पता चलता है कि पर्यावरणीय डीएनए (ईडीएनए) का विश्लेषण करके मीठे पानी की धाराओं  नदियों और झीलों के भीतर छिपे रहस्यों को उजागर किया जा सकता है। इससे इन महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी प्रणालियों की अधिक कुशल निगरानी की उम्मीद जगती है। मछलियां और पक्षी आमतौर पर सुर्खियों में रहते हैं। उन पर दशकों से निगरानी रखी जा रही है और वे हमें इस बारे में अधिक सक्रिय दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं। दुनिया के विभिन्न भागों में मानवीय गतिविधियों के कारण अलग-अलग स्तर पर खतरा बना रहता है। उदाहरण के लिए  पूरे यूरोप में पिछली शताब्दी में नदी के पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। वर्ष 2010 के बाद से मीठे पानी की जैव विविधता में सुधार स्थिर हो गया है। इस बीच  पुरानी पर्यावरणीय समस्याओं की जगह नई समस्याएं आ रही है  जिनमें जलवायु परिवर्तन से लेकर पुरानी सीवेज प्रणालियों से निकलने वाले उभरते प्रदूषक शामिल हैं।

             मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को समझना पहले कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा। इसे प्रभावी ढंग से करने के लिए  इस बात की व्यापक निगरानी आवश्यक है कि कौन सी प्रजातियां मौजूद हैं। यह केवल नई तकनीकों को एकीकृत करके ही संभव है जिनमें ईडीएनए का विश्लेषण भी शामिल है।

             मछलियों पर आमतौर पर ‘‘इलेक्ट्रोफिशिंग’’ द्वारा नजर रखी जाती है  जिसमें पानी के माध्यम से विद्युत प्रवाह प्रवाहित किया जाता है  जिससे मछलियां अस्थायी रूप से अचेत हो जाती हैं। जो भी मछलियां सतह पर तैरती हैं  उनकी पहचान की जाती है और उनकी गिनती की जाती है।

             दूसरी ओर  ईडीएनए को पानी के नमूने से फिल्टर किया जा सकता है  फिल्टर से निकाला जा सकता है  रुचि के टैक्सोनोमिक समूह के लिए विश्लेषण किया जा सकता है। ईडीएनए के उपयोग के कई लाभ हैं। नमूना संग्रह आसान है और इसके लिए विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है  जिससे नागरिक वैज्ञानिकों की भागीदारी संभव हो जाती है।

             इस बात को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है कि नदियों में आप कई किलोमीटर ऊपर से लाए गए जीवों के ईडीएनए का पता लगा रहे हैं  जिससे आप यह नहीं समझ पा रहे हैं कि पूरे नदी जलग्रहण क्षेत्र में किसी प्रजाति का संकेत कहां से आया है। यह नया शोध प्रभावी प्रबंधन समाधान तैयार करने की कुंजी है और इससे हमारे बहुमूल्य मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित होगा।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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