इंजीनियरिंग के मूल सिद्धांतों को एआई से बदला नहीं जा सकता, पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं : आईआईटी प्रमुख

नयी दिल्ली, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के निदेशक लक्ष्मीधर बेहरा का कहना है कि कृत्रिम मेधा (एआई) उस स्तर पर नहीं है जहां यह वास्तव में छात्रों को शिक्षित कर सके और इंजीनियरिंग के मूल सिद्धांतों को इसके द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।

             उन्होंने कहा कि एआई आने से इंजीनियरिंग कॉलेजों में पाठ्यक्रम को नया रूप देने की जरूरत नहीं है क्योंकि नई प्रौद्योगिकियां अनुसंधान नहीं कर सकती हैं। बेहरा ने पीटीआई-भाषा के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि अब तक एआई या संबंधित उपकरण उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां यह वास्तव में हमारे छात्रों को वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ-साथ वैज्ञानिक संभावनाओं के संदर्भ में शिक्षित कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि एआई अभी इस योग्य है क्योंकि हम स्वयं अपनी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को नहीं समझते हैं।’’

             उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, हमारे पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है कि एक व्यक्ति गणित को क्यों समझ पाता है और दूसरा व्यक्ति क्यों नहीं। तो हम एक ऐसी प्रणाली कैसे बना सकते हैं, जब हम अपनी स्वयं की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को बहुत खराब तरह से समझते हैं?’’

             ‘इंटेलिजेंट सिस्टम एंड कट्रोल’, दृष्टिकोण-आधारित रोबोटिक्स और वेयरहाउस ऑटोमेशन जैसे क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए पहचाने जाने वाले बेहरा ने दावा किया, ‘‘चैटजीपीटी एक अच्छा नवाचार है लेकिन यह उतना ही मूर्खतापूर्ण भी है।’’

             उन्होंने कहा, ‘‘यह अवधारणा को नहीं समझता है। यह सिर्फ भारी भरकम आंकड़ों से जानकारी इकट्ठा करता है।’’

             एआई के उपयोग में बढ़ोत्तरी के मद्देनजर शिक्षा और शिक्षण तथा सीखने के तौर-तरीकों को कैसे फिर से तैयार करना होगा, इस पर चल रही बहस के बीच बेहरा ने कहा कि कोई भी एआई प्रणाली स्वाभाविक रूप से संज्ञानात्मक नहीं है, बल्कि वे चीजों को संभव बनाने के लिए अपने विशाल डेटाबेस पर निर्भर हैं।

             निदेशक ने कहा, ‘‘नहीं, हमें अपना पाठ्यक्रम पूरी तरह से बदलने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह हमारे लिए विवेकपूर्ण कदम नहीं होगा। एआई के साथ भी हमें अभी भी ऐसे अच्छे इंजीनियरों की आवश्यकता होगी, जिनके पास अच्छी अवधारणाएं हों। संरचनात्मक इंजीनियरिंग की अवधारणा के बिना, इंजीनियर एक पुल कैसे बना सकते हैं या वे 100 मंजिला अपार्टमेंट कैसे बना सकते हैं, जो भूकंप-रोधी हो।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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