ई10 पेट्रोल: कार्बन उत्सर्जन कम होने की उम्मीद, लेकिन बढ़ सकते हैं खाद्य पदार्थों के दाम

स्वान्जी (ब्रिटेन), ब्रिटेन में नए प्रकार के पेट्रोल ई10 का इस्तेमाल शुरू होने से पुरानी कारों के मालिकों का खर्च थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन इससे कार्बन कार्बनडाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में काफी मदद मिल सकती है।

ई10 एक प्रकार का मोटर वाहन ईंधन है। इसमें 90 प्रतिशत सीसारहित पेट्रोल और 10 प्रतिशत इथेनॉल मिला होता है, इसलिये इसे ई10 नाम दिया गया है।

इथेनॉल एक एल्कोहल है, जिसे एथिल एल्कोहल या ग्रेन एल्कोहल भी कहा जाता है। चुकंदर और गेहूं सहित कुछ पौधों से पेट्रोकेमिकल या जैविक प्रक्रियाओं के माध्यम से इसका उत्पादन किया जाता है। केवल शुद्ध इथेनॉल का इस्तेमाल करके भी कारों का चलाना संभव है। ब्राजील में दशकों से इसका इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि ब्रिटेन में इसे ईंधन साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।

ब्रिटेन में अब तक ई5 पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें पांच प्रतिशत इथेनॉल जबकि 95 प्रतिशत पेट्रोल मिला होता है।

ब्रिटेन सरकार की दलील है कि पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिये ई10 पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। इससे कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम होता है। सरकार का कहना है कि पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा को दोगुना करने से कार्बनडाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में 7,50,000 टन तक की कमी लाई जा सकती है। यह 3,50,000 कारों को सड़कों से हटाने के समान होगा।

ई10 के लाभ

इसका पहल का लक्ष्य ई10 बनाने के लिए विशेष रूप से पौधों पर आधारित इथेनॉल का उपयोग करना है। इसका एक फायदा यह भी है कि इथेनॉल बनाने वाले पौधों का उत्पादन बढ़ेगा। ये पौधे ईंधन उत्पादन और दहन के दौरान हवा में जितनी कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ी जाएगी, उससे कहीं अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर लेंगे, जिससे उत्सर्जन कम होगा। हालांकि वे कितना कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर पाएंगे, यह अब भी चर्चा का विषय है। यह अवधारणा तो अच्छी है, लेकिन इथेनॉल का स्रोत एक महत्वपूर्ण अंतर पैदा कर सकता है।

अमीरों के लिये बनेगा ईंधन, गरीबों पर पड़ सकता प्रभाव

पिछले अध्ययनों से पता चला है कि मकई से बना इथेनॉल गैसोलीन (पेट्रोल) की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 20 प्रतिशत कम करता है। कार्बन डाई ऑक्साइड की गणना से पता चलता है कि मकई से बना इथेनॉल कार्बन उत्सर्जन को कम करता है – लेकिन अगर आप पूरी तस्वीर को देखें तो यह वास्तव में उतना कारगर नहीं है। इसकी एक वजह मकई से एथेनॉल के उत्पादन से भूमि में होने वाले बदलाव को भी माना जाता है।

एक डर यह भी है कि फसलों का इस्तेमाल अमीरों के लिए ईंधन बनाने के लिए किया जाएगा, जिससे गरीबों के लिये खाद्य सामग्रियों की किल्लत हो सकती है। जुलाई 2008 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2002 और 2008 के बीच जैव ईंधन के इस्तेमाल से वैश्विक स्तर पर मकई और चुकंदर जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतों में 70% की वृद्धि हुई है। यदि ई10 के उपयोग से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करना है, तो इथेनॉल के लिये खाद्य उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिये। इसके बजाय अगर मनुष्य के लिये गैर-लाभकारी दूसरे स्रोतों से इथेनॉल बनाई जाए तो खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि को रोका जा सकता है।

पर्यावरण के लिये अनुकूल, लेकिन खर्चीला है ई10 का इस्तेमाल

इथेनॉल को अन्य ईंधन मिलाकर इस्तेमाल करने से भले ही कार और उसके इंजन का प्रदर्शन बेहतर हो, लेकिन शुद्ध ईंधन की तुलना में इसकी खपत अधिक होती है, जिसका अर्थ यह है कि आपकी कार में ई10 का उपयोग आपकी जेब पर भारी पड़ेगा।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

%d bloggers like this: