एशियाई शहरों की वायु में एक अदृश्य हत्यारा

लंदन, तेजी से बढ़ते दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 1,50,000 की वृद्धि हुई है। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के शहरों में लाखों लोगों के वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले मरने का खतरा है। वायु प्रदूषण पर अपर्याप्त नियंत्रण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया जैसे प्रदूषकों की निगरानी के लिए अपर्याप्त धन के कारण चुनौतियां बढ़ जाती हैं जो हानिकारक सूक्ष्म कण (पीएम2.5) भी बनाते हैं।

उनमें से सबसे खतरनाक प्रदूषक तत्व पीएम2.5 है, जो फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश करता है और मानव शरीर के लगभग हर अंग पर प्रभाव डालता है। पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से 2005 में दक्षिण एशियाई शहरों में 1,49,000 और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों में 53,000 लोगों की मौत हुई।

साल 2018 में दक्षिण एशियाई शहरों में यह 1,26,000 से 2,75,000 और दक्षिण पूर्व एशियाई शहरों में 26,000 से 80,000 तक बढ़ गया। बांग्लादेश में ढाका और भारत में मुंबई तथा बेंगलुरु में पीएम2.5 के दीर्घकालिक जोखिम से शुरुआती मौतों में सबसे बड़ी वृद्धि हुई।

दक्षिण एशियाई शहरों में शुरुआती मौतों में बड़ी वृद्धि 2005 से 2018 तक बढ़ती आबादी और पीएम2.5 स्तर दोनों का संयुक्त परिणाम है। दक्षिण पूर्व एशिया के शहरों के लिए, जनसंख्या वृद्धि ने पीएम2.5 के स्तर में परिवर्तन की तुलना में वृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। अध्ययन के ये निष्कर्ष, जो केवल उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पर केंद्रित थे, सुझाव देते हैं कि भले ही वायु प्रदूषण का स्तर समान रहे, इन तेजी से बढ़ते शहरों की आबादी में वृद्धि से हानिकारक प्रदूषकों के जोखिम में वृद्धि होगी जिसका परिणाम प्रारंभिक मौतों में वृद्धि के रूप में निकलेगा।

इस सदी में प्रत्याशित तीव्र शहरी विस्तार के साथ, जब तक वायु प्रदूषण को कम करने के लिए नए उपाय लागू नहीं किए जाते, समस्या और गंभीर हो सकती है। हालांकि, कम लागत वाले ‘सेंसर’ में रुचि बढ़ी है, लेकिन ये अपेक्षाकृत हाल ही में आए हैं इसलिए पिछले दो दशकों में वायु प्रदूषण में बदलाव के बारे में जानकारी प्रदान नहीं करते हैं।

उपग्रहों में लगे उपकरण आसमान में आंखों की तरह काम करते हैं

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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