कल्याणकारी राज्य बनने के बजाय सुखी राज्य बनने पर ध्यान केंद्रित करना विकासशील देशों की जरूरत

कॉवेंट्री (ब्रिटेन), विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों ने मोटे तौर पर गरीबी, बीमारी, अज्ञानता, स्वच्छता और लेटलतीफी जैसी समस्याओं पर काबू पा लिया है। लिहाजा विकासशील देशों के लिए नए यह दृष्टिकोण अपनाने का समय है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्य देशों के नीति निर्माताओं के बीच यह भावना प्रबल हुई है कि 20वीं सदी के नीति प्रतिमान अब निरर्थक होते जा रहे हैं, जिनमें भौतिक समृद्धि को एक व्यापक लक्ष्य के रूप में महत्व दिया गया है।

             एक खुशहाल राज्य के लिए शायद एक लोकतांत्रिक पुनरुत्थान और एक नए सामाजिक संबंध की आवश्यकता है, जो कल्याणकारी राज्य की परिभाषा से थोड़ा ऊपर होता है। यह समय ऐसे पुनरुद्धार के लिए मुफीद है। दुर्भाग्य से, ओईसीडी देशों में ‘टेक्नोक्रेटिक शासन’ के कारण पिछले 40 वर्ष में राजनेता लोकतांत्रिक पुनरुद्धार को अंजाम देने के मामले में पीछे रह गए हैं।

             ‘टेक्नोक्रेटिक शासन’ में निर्णय लेने वालों को उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में काम करने के लिये नियुक्त किया जाता है, विशेष रूप से वैज्ञानिक या तकनीकी ज्ञान के आधार पर।  प्रख्यात सामाजिक अर्थशास्त्री विलियम बेवरीज के अनुसार, कल्याणकारी राज्य वह होता है, जो ‘पांच बड़ी समस्याओं’ गरीबी, बीमारी, अज्ञानता और लेटलतीफी को मिटाने और स्वच्छता पर काम करता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देश आज समृद्ध, स्वस्थ, शिक्षित, स्वच्छ और नियोजित हैं। बहुत से लोग इससे असहमत हो सकते हैं, लेकिन विकसित देश अगर आज यहां तक पहुंचे हैं, तो इसका संबंध संसाधनों के सही वितरण से है, न कि अर्थव्यवस्था के प्रगति करने से।

             सार्वजनिक नीति में कल्याणकारी पहलों को सर्वोत्तम तरीके से कैसे एकीकृत किया जाए, इस पर काम करने के लिए, सबसे पहले कल्याण का अर्थ समझने की जरूरत है।  कल्याणकारी राज्य कैसा होना चाहिए इस सवाल पर वैज्ञानिक अपनी समझ के आधार पर विभिन्न उत्तर देते हैं। मनोवैज्ञानिक खुशी और जीवन में उद्देश्य जैसी मानसिक अवस्थाओं या स्वायत्तता, क्षमता व संबंधित पहलुओं के लिए बुनियादी मनोवैज्ञानिक जरूरतों के पोषण पर जोर देते हैं।

             विकास कार्यों से जुड़े लोग और प्रगतिशील सोच रखने वाले अर्थशास्त्री ‘क्षमताओं’ पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उनकी नजर में कल्याण का अर्थ है विकल्पों का होना और उसमें से वह विकल्प चुनना जो आपके लिए सबसे उपयुक्त हो। वहीं, दार्शनिक आनंद, ज्ञान, सद्गुण, मुक्ति और आत्म-बोध सहित कई प्राथमिक वस्तुओं पर जोर देते हैं।

             इन सबसे ऊपर तंदुरुस्ती ही जीवन को बेहतर बनाती है। इस प्रकार कल्याण को परिभाषित करने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता होती है और इस मामले में विज्ञान कुछ नहीं कर सकता है, बल्कि यह लोकतंत्र पर निर्भर होता है।

             लोक नीति पहले से ही आय और विकास से परे कई तरह के लक्ष्यों को पूरा करती है। ऐसा करने की इसकी क्षमता अक्सर केंद्रीय एजेंसियों, विशेष रूप से कोषागार और वित्त मंत्रालयों की इच्छा से बाधित होती है। अधिकांश लोक नीति अत्यधिक प्रासंगिक हैं, विशेष रूप से सेवा प्रदान करना। ऐसे में विकासशील देशों को कल्याणकारी राज्य से संबंधित विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियां बनानी चाहिए और उन्हें कड़ाई से लागू करना चाहिए। ऐसा करने पर ही कोई देश असल मायनों में कल्याणकारी राज्य बन सकता है।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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