कॉप-26 में कहीं अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा करने का इरादा रखता है न्यूजीलैंड : जलवायु मंत्री

वेलिंगटन, न्यूजीलैंड के जलवायु परिवर्तन मामलों के मंत्री जेम्स शॉ ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी ने यह प्रदर्शित किया है कि मानव किसी तत्काल संकट से बखूबी निपट सकता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन जैसे किसी धीमी गति से बढ़ते खतरे से निपटने की जब बारी आती है तब वह अपने हाथ खड़े कर देता है।

शॉ ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 31 अक्टूबर को होने जा रहे एक प्रमुख जलवायु सम्मेलन से पहले बुधवार को यह बात कही। कई पर्यावरणविदों ने कहा है कि कॉप(पक्षकारों का सम्मेलन) 26, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, जलवायु त्रासदी को टालने का विश्व को एक अंतिम मौका देता है।

शॉ ने कहा कि ग्लासगो में वह आगामी दशक में न्यूजीलैंड की उत्सर्जन (ग्रीन हाउस गैसों की) कटौती के लिए एक कहीं अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा करने का इरादा करते हैं और वह उम्मीद करते हैं कि कई अन्य देश भी अपने-अपने लक्ष्यों को बढ़ाएंगे।

उन्होंने कहा कि शीर्ष प्राथमिकता यह सुनिश्चित करने की होगी कि स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत पर निर्भरता बढ़ाने के लिए गरीब देशों की मदद के वास्ते 100 अरब डॉलर देने का संपन्न राष्ट्रों द्वारा किया गया वादा पूरा किया जाए।

शॉ ने कहा कि विकसित देशों ने अब तक उस वादे को पूरा नहीं किया है।

उन्होंने कहा कि इससे वादे पर भरोसा कम हुआ है और 2015 में पेरिस समझौते में बनी सहमति कमजोर हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह निरंकुश शासनों को भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग में खलल डालने का बहाना दे रहा है।’’

शॉ ने कहा कि महामारी ने कुछ देशों में ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों से स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने की गति बढ़ाई है, लेकिन कई विकासशील देशों में इसकी गति धीमी कर दी है क्योंकि वे महामारी के भारी वित्तीय और सामाजिक प्रभावों से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं।

शॉ ने कहा कि उन्हें इस बारे में संदेह है कि महामारी के दौरान लोगों द्वारा किये गये कुछ सकारात्मक पर्यावरणीय बदलाव–घर से काम करने और वाहन कम चलाने जैसे–टिकाऊ होंगे या नहीं।

न्यूजीलैंड सरकार ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बन जाने का वादा किया है। महामारी से ठीक पहले 50 लाख की आबादी वाले इस देश में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सर्वकालिक चरम पर पहुंच गया था।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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