तालिबान, उसका समर्थन करने वाली विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध के लिए सीनेट में विधेयक पेश

वॉशिंगटन/ इस्लामबाद , अमेरिका समर्थित अफगान सरकार को हटाने से जुड़ी तालिबान की आक्रामक मुहिम तथा पंजशीर घाटी में उसकी आक्रामक कार्रवाई में पाकिस्तान की भूमिका पर अमेरिकी विदेश मंत्री से उनके आकलन पर एक रिपोर्ट की मांग करते हुए अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पेश किया गया है । पाकिस्तान ने इसे ‘अवांछनीय’ कदम करार दिया है।

अमेरिका के 22 रिपब्लिकन सीनेटर के एक समूह द्वारा मंगलवार को पेश विधेयक में अफगानिस्तान में तालिबान और उसका समर्थन करने वाली सभी विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान भी शामिल है।।

‘ अफगानिस्तान आतंकवाद विरोध, निगरानी एवं जवाबदेही’ नामक इस कानून में अमेरिकी विदेश मंत्री से 2001-20 के दौरान तालिबान के समर्थन में पाकिस्तान की भूमिका, अफगानिस्तान सरकार को हटाने से जुड़ी उसकी आक्रामक मुहिम तथा पंजशीर घाटी तथा अफगान विरोध प्रदर्शन के प्रति तालिबान की आक्रामक कार्रवाई में पाक समर्थन पर अपने आकलन पर एक रिपोर्ट पेश करने की मांग की गयी है।

विधेयक सीनेटर जिम रिश ने पेश किया। वह सीनेट विदेश संबंध समिति के सदस्य हैं।

विधेयक में विदेश मंत्री से एक रिपोर्ट की मांग की गई है कि 2001 से 2020 के बीच तालिबान को समर्थन देने में पाकिस्तान की भूमिका, जिसके कारण अफगानिस्तान की सरकार गिरी… साथ ही पंजशीर घाटी तथा अफगान प्रतिरोध के खिलाफ तालिबान के हमले में पाकिस्तान के समर्थन के बारे में उनका आकलन बताने के लिए कहा गया है।

इसमें उन क्षेत्रों की पहचान के बारे में राष्ट्रपति की तरफ से रिपोर्ट मांगी गई है जहां क्षेत्र में चीन, रूस और तालिबान की तरफ से पेश आर्थिक एवं सुरक्षा चुनौतियों के समाधान में भारत के साथ राजनयिक, आर्थिक और रक्षा सहयोग को बढ़ाया जा सके। इसमें इस आकलन के बारे में भी बताने के लिए कहा गया है कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद भारत की सुरक्षा स्थितियों में बदलाव का भारत और अमेरिका के बीच सहयोग पर किस तरह से असर होगा।

जिम रिश ने सीनेट के पटल पर विधेयक पेश करने के बाद कहा, ‘‘ हम अफगानिस्तान से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन की बेतरतीब वापसी के गंभीर प्रभावों पर गौर करना जारी रखेंगे। ना जाने कितने ही अमेरिकी नागरिकों और अफगान सहयोगियों को अफगानिस्तान में तालिबान के खतरे के बीच छोड़ दिया गया। हम अमेरिका के खिलाफ एक नए आतंकवादी खतरे का सामना कर रहे हैं, वहीं अफगान लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हुए तालिबान गलत तरीके से संयुक्त राष्ट्र से मान्यता चाहता है।’’

विधेयक में आतंकवाद का मुकाबला करने, तालिबान द्वारा कब्जा किए गए अमेरिकी उपकरणों के निपटान , अफगानिस्तान में तालिबान तथा आतंकवाद फैलाने के लिए मौजूद अन्य गुटों पर प्रतिबंध और मादक पदार्थों की तस्करी तथा मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए रणनीतियों की आवश्यकता की भी मांग की गई है। इसमें तालिबान पर और संगठन का समर्थन करने वाली सभी विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई है।

इस बीच, अमेरिका के एक शीर्ष सैन्य जनरल ने कहा कि अफगानिस्तान पर अब शासन कर रहा तालिबान 2020 के दोहा समझौते का सम्मान करने में विफल रहा है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संगठन अभी तक अल-कायदा से अलग नहीं हुआ है।

‘यूएस ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ’ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों से कहा, ‘‘ दोहा समझौते के तहत, अमेरिका को तालिबान की कुछ शर्तों को पूरा करने पर अपनी सेना को वापस बुलाना शुरू करना था, जिससे तालिबान और अफगानिस्तान की सरकार के बीच एक राजनीतिक समझौता हो पाए।’’

उन्होंने कहा कि समझौते के तहत तालिबान को सात शर्तें और अमेरिका को आठ शर्तें पूरी करनी थी। मिले ने कहा, ‘‘तालिबान ने अमेरिकी सेना पर हमला नहीं किया, जो कि एक शर्त थी, लेकिन वह दोहा समझौते के तहत किसी भी अन्य शर्त को पूरा करने में पूर्ण रूप से विफल रहा। वहीं शायद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तालिबान कभी भी अल-कायदा से अलग नहीं हुआ या उनके साथ अपना संबंध नहीं तोड़ा।’’

अधिकारी ने कहा कि दूसरी ओर अमेरिका ने अपनी सभी शर्तों को पूरा किया। यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में युद्ध उन शर्तों पर समाप्त नहीं हुआ, जिन पर अमेरिका चाहता था।

अमेरिका द्वारा एक मई को अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू करने के बाद तालिबान ने देश के कई हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था और 15 अगस्त को उसने काबुल को भी अपने नियंत्रण में ले लिया।

मिले ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनका मानना है कि अल-कायदा अफगानिस्तान में है और वे फिर एक साथ आना चाहते हैं।

उधर, बुधवार को पाकिस्तान ने कहा कि अमेरिकी कांग्रेस में पेश किये गये कानून में उसका जिक्र ‘अवांछनीय’ है।

अमेरिकी सीनेटरों के मसौदा विधेयक के बारे में मीडिया के सवालों पर इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह मसौदा कानून उस बहस पर प्रतिक्रया जान पड़ती है जो वाशिंगटन में मीडिया और कैपिटॉल हिल में चल रही है और इस बहस का केंद्र अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी से जुड़ी परिस्थितियों का परीक्षण करना है।

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘ इस कानून में पाकिस्तान का जिक्र है जो बिल्कुल अवांछनीय है। हम ऐसे सभी जिक्र को 2001 से अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान-अमेरिका सहयोग की भावना से असंगत पाते हैं , इस सहयोग में अफगान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने तथा हाल में अफगानिस्तान से अमेरिकी एवं अन्य नागिरकों को निकालने में सहयोग भी शामिल है।

उसने कहा कि पाकिस्तान ने हमेशा ही कहा है कि अफगानिस्तान में संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है , और कोई भी जोर-जबर्दस्ती काम नहीं आयेगी , अफगानिस्तान में दीर्घकालिक शांति हासिल करने का एकमात्र तरीका केवल प्रबंधन एवं वार्ता है।

अमेरिकी सैन्य बलों की वापसी एक मई से शुरू होने के बाद तालिबान पिछले महीने अफगानिस्तान पर काबिज हो गया था और उसने सभी प्रमुख शहरों एवं नगरों को अपने नियंत्रण में ले लिया। राजधानी शहर काबुल भी 15 अगस्त को उनके कब्जे में चला गया।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Getty Images

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