दिल्ली उच्च न्यायालय ने हत्या के दो दोषियों को दो दशक से अधिक समय बाद बरी किया

नयी दिल्ली  दिल्ली उच्च न्यायालय ने करीब 27 साल पहले कथित हत्या के एक मामले में दो लोगों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया और उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि उन्हें केवल इस आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि वे आखिरी बार उस शख्स के साथ देखे गए थे जिसकी हत्या कर दी गई थी।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने अक्टूबर 2001 के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपीलों पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि वे मृतक के साथ काम करते थे  इसलिए उनका साथ होना असामान्य नहीं हो सकता और गवाहों के बयान में विश्वास नहीं झलकता।  पीठ में न्यायमूर्ति मनोज जैन भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि चूंकि आरोपी और मृतक एक साथ काम कर रहे थे  इसलिए ‘अंतिम बार देखा गया’ के सिद्धांत को अभियोजन के मामले को संपूर्णता में ध्यान में रखते हुए और पूर्ववर्ती और बाद की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए।

अदालत ने 16 अप्रैल के अपने फैसले में कहा  ‘‘हमारी राय है कि आरोपियों को केवल इस आधार पर दोषी ठहराना सही नहीं होगा कि वह आखिरी बार साथ में दिखे थे और यह बात भी संदेह से परे साबित नहीं हुई है।’’  मृतक का शव जुलाई 1997 में रेलवे की पटरी पर मिला था और कुछ दिन बाद अपीलकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि व्यक्ति की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उसे एक अपीलकर्ता के एक महिला के साथ ‘अवैध संबंध’ के बारे में पता चल गया था।उच्च न्यायालय ने 2003 और 2004 में दोनों अपीलकर्ताओं की उम्रकैद की सजा निलंबित कर दी थी। दोनों प्रवासी मजदूर थे जो निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास झुग्गियों में रहते थे।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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