दूरगामी प्रभाव वाले आदेश देने से पहले वादियों की साख की जांच होनी चाहिए : न्यायालय

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि याचिकाकर्ताओं को ‘न्याय का दरवाजा खटखटाने’ और ऐसे आदेश हासिल करने की अनुमति देने से पहले उनकी साख और प्रामाणिकता की जांच की जानी चाहिए, जिनके चलते निवेश रुकने और राज्य में हजारों लोगों के रोजगार पर असर पड़ने जैसे दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में यह बात कही। संबंधित आदेश में न्यायालय ने लकड़ी आधारित नए उद्योगों (डब्ल्यूबीआई) की स्थापना के लिए अस्थायी लाइसेंस देने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ दायर अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में यह अनुमान लगाने की गुंजाइश है कि मुकदमा मौजूदा डब्ल्यूबीआई के इशारे पर हो सकता है, जो प्रतिस्पर्धा से बचना चाहते थे और सस्ती दर पर कच्चा माल प्राप्त करना जारी रखना चाहते थे।

पीठ ने कहा कि हो सकता है कि हरियाणा के यमुना नगर जिले में डब्ल्यूबीआई के इशारे पर भी मुकदमेबाजी की गई, जहां उत्तर प्रदेश से लाखों टन लकड़ी का निर्यात किया जाता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम पाते हैं कि एक वादी को न्याय का दरवाजा खटखटाने और ऐसे आदेश प्राप्त करने की अनुमति देने से पहले आवेदकों की साख और प्रामाणिकता की जांच की जानी चाहिए, जिसके हजारों लोगों के रोजगार को प्रभावित करने, राज्य में निवेश को रोकने, किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाने जैसे दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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