न्यायालय ने सीपीसीबी को पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों से होने वाले प्रदूषण पर वैज्ञानिक अध्ययन करने को कहा

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों से होने वाले प्रदूषण का वैज्ञानिक अध्ययन करने और डेटा प्राप्त करने को कहा है और उससे यह भी पूछा है क्या इनके परिचालन के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता है।

             न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी), पूर्वी क्षेत्र के एक मई 2023 के उस निर्देश पर सुनवाई की अगली तारीख तक अमल न करने का आदेश दिया है, जिसमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल में पत्थर तोड़ने वाली संभावित इकाइयों को राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) से पूर्व पर्यावरण मंजूरी लेने की आवश्यकता है।

             पीठ ने सीपीसीबी से पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों के कारण होने वाले प्रदूषण पर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने और इस सवाल पर अपनी राय देने को कहा कि क्या उन्हें 14 सितंबर 2006 को जारी पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 की उस अनुसूची के तहत लाया जाना चाहिए या नहीं, जिसके तहत कुछ परियोजनाओं और गतिविधियों के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता होती है।

             पीठ ने गत तीन जनवरी को आदेश दिया, ‘‘सीपीसीबी आवश्यक डेटा प्राप्त करेगा और उपरोक्त पहलुओं पर वैज्ञानिक अध्ययन करेगा तथा आज से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर इस अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करेगा।’’

             इसमें कहा गया है कि यदि पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों को पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है, तो सीपीसीबी मौजूदा आदेश के बावजूद कानून के नजरिये से जरूरी निर्देश जारी करेगा।

             शीर्ष अदालत ने एनजीटी पूर्वी क्षेत्र के एक मई, 2023 के आदेश के खिलाफ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से दायर अपील पर यह आदेश पारित किया।

             हरित न्यायाधिकरण ने बिप्लब कुमार चौधरी की याचिका पर यह आदेश पारित किया था।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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