माधवराव सिंधिया ने जब अपनी ही मां के खिलाफ किया था चुनाव प्रचार : पुस्तक

नयी दिल्ली  कांग्रेस के दिवंगत नेता माधवराव सिंधिया का अपनी ही मां के खिलाफ चुनाव प्रचार करना  कांशीराम का मतदाताओं से एक रुपया मांगना और एन टी रामा राव का टूटी-फूटी हिंदी में बोलना  अतीत के चुनावों के ये कुछ ऐसे दिलचस्प पहलू हैं जिनके बारे में एक नयी पुस्तक में विस्तार से वर्णन किया गया है।

             वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के दौरान  माधवराव ने गुना सीट अपनी मां एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेता विजयाराजे सिंधिया के हाथों में जाने से रोकने के लिए प्रचार किया था  जो ग्वालियर राजघराने की राजमाता थीं।  लेखक-पत्रकार भास्कर रॉय ने अपने राजनीतिक संस्मरण ‘‘फिफ्टी ईयर रोड’ में लिखा है  इसी तरह  विजयाराजे के निशाने पर राजीव गांधी या उनके (विजयराजे के) खिलाफ चुनाव मैदान में उतारे गए कांग्रेस उम्मीदवार नहीं थे  बल्कि उनके ही बेटे माधवराव थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव गुना से लगी अपनी संसदीय सीट ग्वालियर को बचा रहे थे। राजमाता अपने चुनाव प्रचार में कहा करती थीं  ‘‘अपने महाराज से पूछिये कि काम क्यों नहीं हुआ  विकास क्यों नहीं हुआ  यदि हम पर कोई ईंट फेंकेगा तो हम पत्थर से जवाब देंगे।’’

             लेखक ने पुस्तक में कहा है  ‘‘ग्वालियर रियासत के अंतिम शासक महाराज जिवाजीराव सिंधिया की पत्नी विजयाराजे के अपने इकलौते बेटे के साथ इस तरह का वैचारिक मतभेद दिलचस्प था।’’

             उन्होंने कहा कि इसे उन दोनों के केवल राजनीतिक मतभेदों के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता  बल्कि कई लोगों का मानना था कि विजयाराजे अपने बेटे के राजनीतिक करियर के शुरूआत में ही कांग्रेस का दामन थामने के फैसले से काफी आहत हुई थीं। उन्होंने कहा कि विजयराजे उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ के भविष्य के नेता के रूप में तैयार कर रही थीं।

             पुस्तक में कहा गया है  ‘‘राजमहल के मामलों से करीबी तौर पर जुड़े रहे लोगों ने बताया कि राज परिवार की अकूत संपत्ति के प्रबंधन को लेकर रस्साकशी के चलते उनके बीच यह दरार पैदा हुई थी। वह (विजयाराजे) चुनाव में उन्हें पराजित करने की अपने बेटे की कोशिश से हैरान रह गई थीं।’’ इसमें कहा गया है कि हालांकि  माधवराव को लगता था कि उनकी मां भाजपा की कठपुतली हैं  जो (पार्टी) ‘‘उनके रूतबे का फायदा उठा रही’’ थी।

             पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि कैसे आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन टी रामा राव (एनटीआर) राजीव गांधी को कड़ी चुनौती दे रहे थे । उन्होंने (राव ने) कांग्रेस विरोधी सभी ताकतों को एकजुट करने की कोशिश की थी। हरियाणा में एक जनसभा में देवीलाल के समर्थकों ने एनटीआर के बारे में कहा था–‘‘ ताऊ का मद्रासी दोस्त उनके लिए प्रचार करने आया है।’’ देवीलाल बाद में देश के उपप्रधानमंत्री बने थे।

             लेखक के अनुसार  एनटीआर हिंदी या अंग्रेजी में सहज नहीं थे। पुस्तक में कहा गया है  ‘‘एक बार  एनटीआर ने एक सभा को हिंदी में संबोधित किया लेकिन वहां बैठे किसानों को शायद की कुछ समझ में आया। हालांकि  एक-दो पंक्तियां लोगों की जुबान पर बनी रहीं–‘कांग्रेस को उखाड़ फेंको’।

             पुस्तक में  1988 में इलाहाबाद संसदीय उपचुनाव में कांशीराम के चुनाव अभियान का भी उल्लेख किया गया है। (निर्दलीय उम्मीदवार) विश्वनाथ प्रताप सिंह और कांग्रेस के सुनील शास्त्री के खिलाफ चुनाव लड़े कांशीराम को 72 000 वोट मिले थे और वह तीसरे स्थान पर रहे। सिंह ने जीत दर्ज की थी।

             पुस्तक में कांशीराम को उद्धृत करते हुए कहा गया है  ‘‘बड़े राजनीतिक दल वोट हासिल करने के लिए पैसे और शराब बांट रहे हैं। इलाहाबाद में  मैंने प्रत्येक मतदाता से मुझे समर्थन के उनके संकल्प के रूप में एक रुपये का नोट देने का आग्रह किया है। मैंने एक वोट एक नोट-नारा दिया।’’

             पुस्तक में राजीव गांधी  माधवराव सिंधिया  एनटीआर और वीपी सिंह के अलावा जिन अन्य शख्सियतों का चित्रण किया गया है उनमें अटल बिहारी वाजपेयी  ज्योति बसु  सिद्धार्थ शंकर रे  चारु मजूमदार  मनमोहन सिंह  लाल कृष्ण आडवाणी  सोनिया गांधी  अमिताभ बच्चन और नरेन्द्र मोदी शामिल हैं। शुक्रवार को यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में जैयको द्वारा प्रकाशित पुस्तक पर एक  महत्वपूर्ण बातचीत  आयोजित की गई जिसमें बीएसएफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह  पूर्व राजनयिक नवतेज सरना  जामिया मिलिया इस्लामिया की प्रोफेसर अनुराधा घोष और लेखक ने भाग लिया।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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