मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं होने का फायदा उठाना तकलीफदेह : न्यायालय

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं होने का फायदा उठाये जाने की प्रवृत्ति को तकलीफदेह करार दिया।

अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 324 के विषय को उठाया जिसमें निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में कहा गया है। अदालत ने कहा कि इसमें इस तरह की नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया नहीं दी गयी है।

अदालत ने कहा कि इसके अलावा, उसने इस संबंध में संसद द्वारा एक कानून बनाने की परिकल्पना की थी, जो पिछले 72 वर्षों में नहीं किया गया है, जिसके कारण केंद्र द्वारा इसका फायदा उठाया जाता रहा है।

अदालत ने कहा कि 2004 से किसी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है और संप्रग सरकार के 10 साल के शासन में छह मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे, वहीं राजग सरकार के आठ साल में आठ मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे हैं।

न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक देश की बात है यह तकलीफदेह प्रवृत्ति है। संविधान में इस बाबत कोई नियंत्रण और संतुलन नहीं है। संविधान की चुप्पी को किस तरह भुनाया जा रहा है। कोई कानून नहीं है और कानूनन वे सही हैं। कानून की अनुपस्थिति में कुछ नहीं किया जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग की गयी है।

पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त एक संस्था का नेतृत्व करते हैं, लेकिन अपने संक्षिप्त कार्यकाल के साथ वह कुछ ठोस नहीं कर सकते।

पीठ ने मामले में केंद्र की ओर से प्रस्तुत हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से कहा, ‘‘2004 से मुख्य निर्वाचन आयुक्तों की सूची पर नजर डालें तो उनमें से अधिकतर का कार्यकाल दो साल से ज्यादा नहीं रहा। कानून के अनुसार उनका छह साल या 65 वर्ष तक की आयु का कार्यकाल होता है, जो भी पहले हो। इनमें से अधिकतर पूर्व नौकरशाह थे और सरकार को उनकी आयु के बारे में पता था। उन्हें ऐसे समय में नियुक्त किया गया कि वे कभी छह साल की अवधि पूरी नहीं कर पाये और उनका कार्यकाल संक्षिप्त रहा।’’

वेंकटरमानी ने कहा कि जिस मौजूदा प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं, उसे असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता और अदालत उसे खारिज नहीं कर सकतीं।.

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान सभा, जिसके समक्ष विभिन्न मॉडल थे, ने इस मॉडल को अपनाया था और अब अदालत यह नहीं कह सकती कि मौजूदा मॉडल पर विचार करने की जरूरत है। इस संबंध में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है जिसकी व्याख्या की जरूरत है।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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