रिजर्व बैंक ने 2022-23 के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर कायम रखा

मुंबई, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भू-राजनीतिक घटनाक्रमों तथा जिंसों की ऊंची कीमतों के बीच चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के अपने अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर कायम रखा है। हालांकि, केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि खरीफ की बुवाई बढ़ने और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार से आगे चलकर मुद्रास्फीतिक दबाव कम होगा।

जून में पिछली मौद्रिक समीक्षा बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के अनुमान को 5.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया था।

रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने चालू वित्त वर्ष की चौथी मौद्रिक समीक्षा में सर्वसम्मति से प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत करने का फैसला किया है।

रेपो वह दर है जिसके आधार पर रिजर्व बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंकों को अल्प अवधि का ऋण देता है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी और तीसरी तिमाही में मुद्रास्फीति छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर रहेगी। रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) पर रखने का लक्ष्य दिया गया है।

दास ने मौद्रिक समीक्षा बैठक के नतीजों की घोषणा करते हुए कहा कि खाद्य पदार्थों तथा धातुओं के दाम अपने हालिया उच्चस्तर से नीचे आ चुके हैं, लेकिन भू-राजनीतिक झटकों की वजह से मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चतता की स्थिति अभी बनी हुई है।

उन्होंने कहा कि हाल के हफ्तों में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम नरम हुए हैं, लेकिन ये अब भी उच्चस्तर पर हैं और इनमें उतार-चढ़ाव है। वैश्विक मांग परिदृश्य कमजोर होने के बीच आपूर्ति पक्ष की चिंताएं हैं।

दास ने कहा कि 2022 में मानसून सामान्य रहने और भारत का कच्चे तेल का आयात औसतन 105 डॉलर प्रति बैरल रहने के अनुमान के आधार पर 2022-23 के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर कायम रखा गया है।

रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 7.1 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहेगी।

दास ने कहा कि मुद्रास्फीतिक परिदृश्य के संदर्भ में जोखिम समान रूप से संतुलित हैं। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2023-24 की पहली तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर पांच प्रतिशत पर आ जाएगी।

केंद्रीय बैंक ने कहा कि मौजूदा मानूसन के मौसम में खरीफ की बुवाई ने रफ्तार पकड़ी है। यह घरेलू मूल्य परिदृश्य के लिहाज अच्छा है। इससे ग्रामीण उपभोग को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

दास ने कहा, ‘‘धान की बुवाई में कमी पर निगाह रखने की जरूरत है। हालांकि, देश में चावल का स्टॉक बफर नियमों से ऊपर है।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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