मुंबई, बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को शहर में स्थित ब्रीच कैंडी अस्पताल को एल्गार परिषद -माओवादी संबंध मामले में आरोपी हनी बाबू की दोबारा जांच कर 14 जून तक मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के लिये कहा है । न्यायालय ने कहा कि वह सभी मामलों में बिना किसी भय के आदेश पारित करता है।
न्यायमूर्ति एस एस शिंदे तथा न्यायमूर्ति अभय आहूजा की पीठ ने कहा कि तब तक दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक बाबू का दक्षिण मुंबई में स्थित इस अस्पताल में इलाज चलता रहेगा और उनका परिवार इलाज का खर्च उठाएगा। अदालत ने कहा कि वह 15 जून को बाबू की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगी।
अदालत ने स्वास्थ्य और चिकित्सा सहायता के आधार पर अंतरिम जमानत देने की बाबू की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। इस दौरान अदालत ने सह आरोपी स्टैन स्वामी के स्वास्थ्य को लेकर एक समाचार आलेख पर आपत्ति की।
अस्पताल ने बृहस्पतिवार को उच्च न्यायालय में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा गया था कि बाबू का कोविड-19 और आंख में संक्रमण का इलाज हो चुका है और अब वह ठीक हैं और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है।
बाबू के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता युग चौधरी ने उच्च न्यायालय से बाबू को अभी तलोजा जेल नहीं भेजने का अनुरोध किया।
बाबू अस्पताल लाए जाने से पहले नवी मुंबई में स्थित इस जेल में विचाराधीन कैदी के तौर पर बंद थे।
इससे पहले, न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की पीठ ने कहा कि चूंकि अस्पताल उन्हें छुट्टी के लिये पूरी तरह फिट घोषित कर चुका है, लिहाजा अदालत निजी अस्पताल को उनका इलाज करते रहने और भर्ती रखने के लिये मजबूर नहीं कर सकती।
अभियोजन एजेंसी एनआईए के वकील अधिवक्ता संदेश पाटिल ने चौधरी के अनुरोध का विरोध किया और कहा कि बाबू को वापस जेल भेजा जाना चाहिये।
सुनवाई के दौरान अदालत ने हाल में एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के लिये चौधरी के साथी द्वारा इस मामले में एक अन्य आरोपी स्टेन स्वामी की जमानत याचिका के बारे में लेख लिखने पर नाराजगी जतायी।
अदालत ने चौधरी से पूछा कि क्या आपके साथी का इस मामले में लेख लिखना नैतिक रूप से सही है जबकि यह मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है।
चौधरी ने कहा कि वह या उनके साथी स्टैन स्वामी के वकील नहीं है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, उन्हें लेख लिखने और राहत के लिये अदालत का रुख करने का अधिकार है।
इस पर न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ‘यह स्वीकार्य नहीं है। जब आप विभिन्न मामलों में पेश हो रहे हों तो लेख नहीं लिख सकते। आप इस अदालत के अधिकारी हैं।’
इसके बाद चौधरी ने अदालत से व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने का अनुरोध किया, जिसपर अदालत ने कहा कि वह स्वतंत्र अभिव्यक्ति के खिलाफ नहीं हैं बल्कि बस यही कर रही है कि उस व्यक्ति को न्यायपालिका में भरोसा होना चाहिये।
न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि हम अखबारों में क्या लिखा जा रहा है या आम लोगों के बीच किस बात की चर्चा है, इससे प्रभावित हुए बगैर आदेश पारित करते हैं।
पीठ ने कहा, ‘हम किसी से नहीं डरते। मामले में कानून अहमियत रखता और उसके तथ्य। हमें किसी का डर नहीं है। हम किसी दबाव में नहीं है। हमारे इन शब्दों को नोट कर लीजिये।’
क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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