एक ही प्राथमिकी के आरोपियों के आवेदनों की सुनवाई अलग-अलग पीठों में हो तो विषम स्थिति होगी : न्यायालय

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा उच्च न्यायालय के उस चलन पर गौर किया जहां एक ही प्राथमिकी के विभिन्न आरोपियों की ओर से दाखिल आवेदनों की सुनवाई अलग-अलग पीठों द्वारा की जाती है। न्यायालय ने कहा कि यह ‘‘ विषम स्थितियां’’ पैदा करेगा। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि बहुत से उच्च न्यायालयों में चलन है कि एक ही प्राथमिकी से जुड़े आवेदनों को एक ही न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।  न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थ जिसमें ओडिशा उच्च न्यायालय के जनवरी माह के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में जमानत का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

             उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसने इस मामले में एक ही प्राथमिकी के विभिन्न आरोपियों की आर्जियों पर उच्च न्यायालय के कम से कम तीन भिन्न न्यायाधीशों की ओर से पारित आदेशों को देखा है।

             शीर्ष अदलत ने 15 मई के अपने आदेश में कहा, ‘‘ इस प्रकार का चलन विषम स्थितियां पैदा करेगा। कुछ आरोपियों को जमानत दे दी गई जबकि उसी अपराध में समान भूमिका वाले कुछ आरोपियों को जमानत नहीं दी गई।’’न्यायालय ने 31 जनवरी 2023 के आदेश को खरिज कर दिया और मामले को वापस उच्च न्यायालय को भेज दिया।

             न्यायालय ने कहा,‘‘ उच्च न्यायालय से अनुरोध किया जाता है कि वह अन्य समन्वित पीठों के आदेशों के प्रभाव पर गौर करें और नए सिरे से आदेश पारित करें। यह आज से एक माह के भीतर किया जाना चहिए।’’

             पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत की रजिस्ट्री के रजिस्ट्रार को इस आदेश की प्रति ओडिशा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को भेजने के निर्देश दिए जाते हैं। उससे (उच्च न्यायालय से) इस पर गौर करने तथा उपयुक्त आदेश पारित करने पर विचार का अनुरोध किया जाता है ताकि एक ही अपराध पर विरोधाभासी आदेशों से बचा जा सके।’’

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

%d bloggers like this: