किशोर न्याय संशोधन विधेयक का मकसद प्रशासनिक ढांचे के माध्यम से बच्चों का संरक्षण है : स्मृति ईरानी

लोकसभा में बुधवार को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 चर्चा के लिये पेश किया गया जिसमें बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने तथा जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट तथा अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अतिरिक्त शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है। विधेयक को चर्चा के लिये रखते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि बाल कल्याण समितियों को ज्यादा ताकत दी जा रही है। इससे बच्चों का बेहतर ढंग से संरक्षण में मदद मिलेगी।

ईरानी ने कहा, ‘‘देश के सात हजार से अधिक बाल संरक्षण गृहों का मुआयना किया गया। इन बाल गृहों के ऑडिट में कुछ गंभीर कमियां पाई गईं। 29 फीसदी बाल गृहों का तो पंजीकृत भी नहीं कराया गया था….कई बार बाल गृहों से यौन शोषण की शिकायतें आईं। इस स्थिति को देखते हुए यह संशोधन विधेयक लाया गया है ।’’ मंत्री ने कहा, ‘‘इन संशोधन का लक्ष्य यह है कि हम सतर्क रहें ताकि प्रशासनिक ढांचे के माध्यम से बच्चों का संरक्षण किया जा सके।’’

ईरानी ने बताया कि बच्चों के संरक्षण को केंद्रबिंदु में रखकर जिला मजिस्ट्रेट को निगरानी और कानून के क्रियान्वयन जिम्मेदारी दी जा रही है।

उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के माध्यम से किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन किया जा रहा है। इसके माध्यम से बच्चों के संरक्षण के ढांचे को जिलावार एवं प्रदेशवार मजबूत बनाने के उपाए किये गए हैं।

इन प्रस्तावित संशोधनों में जे जे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के मुद्दे को जिला मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को अधिकृत किया गया है ताकि ऐसे मामलों का तेजी से निपटारा किया जा सके और जवाबदेही तय की जा सके ।

इसके तहत जिला अधिकारियों को कानून के तहत निर्बाध अनुपालन सुनिश्चित करने और कठिनाई में पड़े बच्चों के लिये सुसंगत प्रयास करने के लिये अधिकार सम्पन्न किया गया है । जिला मजिस्ट्रेट को अधिनियम के तहत और अधिक सशक्त बनाते हुए कानून के सुचारू क्रियान्यवन का भी अधिकार दिया गया है जिससे संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयास किए जा सके। सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति संबंधी योग्यता मानदंडों को परिभाषित करने और पहले से अनिर्धारित अपराधों को ‘गंभीर अपराध’ के रूप में वर्गीकृत करने की भी बात विधेयक के प्रस्ताव में कही गयी है।

इसके माध्यम से कानून के विभिन्न प्रावधानों पर अमल में आने वाली दिक्कतों को भी दूर करने की बात कही गई है।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस की परनीत कौर ने कहा कि यह सुनिश्चित होना चाहिए कि कानून के प्रावधानों का पूरी संवेदनशीलता के साथ क्रियान्वयन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधेयक में बाल संरक्षण की जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट को दी गई है, जबकि सबको पता है कि जिला अधिकारियों के पास पहले ही बहुत जिम्मेदारियां होती हैं। उन्होंने सरकार को इस पर गौर करना चाहिए।

भाजपा की अपराजिता सारंगी ने कहा कि 2015 के जेजे कानून के क्रियान्वयन के दौरान जमीनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नया संशोधन विधेयक लाया गया जो काबिलेतारीफ है। उन्होंने कहा कि किशोर न्याय व्यवस्था का दायरा बढ़ाने की जरूरत है ताकि बच्चों का उचित ढंग से संरक्षण हो सके। अपराजिता ने कहा कि यह कहना उचित नहीं है कि जिला अधिकारी इस कानून के क्रियान्वयन के लिए समय नहीं दे सकेगा। जिला मजिस्ट्रेट जिले का अगुआ होता है और वह इस जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छी तरह से कर सकता है।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikipedia

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