केंद्र, राज्यों के कर्ज के बेहतर प्रबंधन के लिये वित्तीय परिषद जैसे संस्थान की जरूरत: एन के सिंह

नयी दिल्ली, पंद्रहवें वित्त आयोग के चेयरमैन एन के सिंह ने सोमवार को केंद्र और राज्यों के कर्ज में वृद्धि के बेहतर प्रबंधन के लिये वित्तीय परिषद जैसी संस्था गठित करने का सुझाव दिया।

उन्होंने पिछले 10 साल में सकल कर राजस्व में उपकर और अधिभार के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि की बात कही। सिंह ने कहा कि संविधान में संशोधन के जरिये अगर इस हिस्से को विभाज्य श्रेणी में रखा जाता है, तभी राज्यों को इस मद में प्राप्त राजस्व का हिस्सा मिल पाएगा।

राजकोषीय चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि कर्ज वृद्धि की रूपरेखा को सुदृढ़ करने के अलावा दो अन्य मुद्दे महत्वपूर्ण बने हुए हैं।

सिंह ने कहा कि भारत में वित्तीय परिषद या इस प्रकार की किसी संस्था का अभाव है। सचाई यह है कि हम उन कुछ देशों में से हैं जहां वित्तीय ढांचा तो है लेकिन कोई स्वतंत्र वित्तीय संस्थान नहीं है। इस चीज को ध्यान में रखने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा लोगों, निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों की न केवल केंद्र सरकार बल्कि केंद्र एवं राज्यों दोनों के कर्ज की स्थिति पर नजर होती है। इसको देखते हुए संस्थागत व्यवस्था की जरूरत है जो दोनों को देखे।

उपकर और अधिभार के बारे में सिंह ने कहा कि 2010-11 में सकल कर राजस्व में इनकी हिस्सेदारी 10.4 प्रतिशत थी जो 2020-21 के बजटीय अनुमान में बढ़कर 19.9 प्रतिशत हो गयी। अगर हम 3 प्रतिशत को जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर में रखें तो 10.4 प्रतिशत बढ़कर 16.5 प्रतिशत हो गया है।

सिंह ने कहा, ‘‘इसका संविधान संशोधन के अलावा कोई व्यावहारिक समाधान नहीं दिखता। अगर संविधान में संशोधन किया जाता है और उपकर तथा अधिभार के कुछ हिस्से को विभाज्य योग्य कर श्रेणी में रखा जाता है, इससे नये वित्त आयोग के लिये चीजें सुगम होंगी…।’’

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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