क्या ऑस्ट्रेलिया की नयी जलवायु नीति प्रशांत देशों के साथ संबंधों को दुरुस्त करने के लिए काफी होगी?

कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बनीज को उम्मीद है कि उनकी सरकार की अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु नीति अगले सप्ताह द्वीप के नेताओं के साथ बैठक में प्रशांत संबंधों को दुरुस्त करने में मददगार साबित होगी।

फिजी की मेजबानी में हो रहा इस साल का ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ 2019 में तुवालु में संपन्न ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ के बाद पहला ऐसा ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ होगा, जिसमें नेता आमने-सामने बैठकर चर्चा करेंगे। पिछले सम्मेलन में अल्बनीज के पूर्ववर्ती स्कॉट मॉरिसन ने प्रशांत क्षेत्रीय जलवायु घोषणा को कमतर करने की कोशिश की थी।

उस तनावपूर्ण शिखर सम्मेलन के बाद फिजी के प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनीमारामा ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि चीन के साथ साझेदारी करना मॉरिसन के साथ काम करने से कहीं बेहतर है। तब से चीन और अमेरिका के बीच भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा भी तेज हो गई है। साल 2022 के ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ में भी इस प्रतिस्पर्धा का साया रहने के आसार हैं।

चीन प्रशांत क्षेत्र के द्वीप देशों के साथ नए सुरक्षा समझौते करने की कोशिशों में जुटा है, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी भी इन देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहे हैं।

हालांकि, ऑस्ट्रेलिया जहां चीन को लेकर चिंतित है, वहीं ज्यादातर प्रशांत देश अपनी दहलीज पर खड़े जलवायु परिवर्तन संकट को लेकर अधिक फिक्रमंद हैं।

प्रमुख प्रशांत नेताओं के एक समूह द्वारा समर्थित जलवायु परिषद की एक नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध होना प्रशांत देशों का पसंदीदा सुरक्षा भागीदार बनने की ऑस्ट्रेलिया की सफल दावेदारी की कुंजी है।

एजेंडे में सबसे ऊपर होगी सुरक्षा

-सुरक्षा अचानक इतनी अहम क्यों हो गई है? वो इसलिए क्योंकि प्रशांत क्षेत्र पिछले कुछ दशकों में पहली बार भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बना है।

यही नहीं, चीन और ताकतवर हो गया है। वह समुद्र में कार्रवाई के लिए नौसेना में अधिक निवेश कर रहा है और प्रशांत देशों के साथ नए सुरक्षा समझौते करने की कोशिशों में जुटा है।

ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा अधिकारी खासतौर पर इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बीजिंग प्रशांत क्षेत्र में चीनी नौसैनिक अड्डे को सुरक्षित करने के लिए बुनियादी ढांचा ऋण का सहारा ले सकता है।

अप्रैल में सोलोमन द्वीप ने चीन के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और अगर इसका प्रारूप इंटरनेट पर लीक हुए मसौदे जैसा है तो इसमें ऐसे प्रावधान शामिल किए गए हैं, जो चीन की सैन्य उपस्थिति और जहाजों की एक बार फिर तैनाती की अनुमति देते हैं।

इस समझौते ने लंबे समय से पश्चिम के साथ जुड़े एक क्षेत्र के समीकरणों को बदल दिया है, प्रशांत क्षेत्र के विघटन और परमाणु परीक्षण के प्रभाव को लेकर चिंताओं के बावजूद।

हालांकि, सोलोमन द्वीप के नेताओं का कहना है कि उनका देश में चीनी अड्डे की स्थापना या सैन्य उपस्थिति को मंजूरी देने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन चिंता बरकरार है।

विदेश मंत्री पेनी वोंग, जो फोरम की बैठक से जुड़े एजेंडे को अंतिम रूप देने के लिए रविवार को प्रशांत देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करेंगी, वह चाहती हैं कि नेता इस विवादास्पद सुरक्षा समझौते पर चर्चा करें।

वोंग के मुताबिक, प्रशांत सुरक्षा पूरे ‘प्रशांत परिवार’ के लिए एक मुद्दा होना चाहिए।

मई में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने द्वीप देशों के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा समझौता करने की उम्मीद में प्रशांत क्षेत्र का दौरा किया था। हालांकि, द्वीप के नेताओं ने उनका प्रस्ताव विनम्रता से अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने तर्क दिया था कि सौदे को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर सहमति नहीं बन पाई है।

बावजूद इसके वांग यी ने अगले सप्ताह प्रशांत देशों के विदेश मंत्रियों के साथ एक बैठक का प्रस्ताव रखा, ठीक उसी दिन जब अल्बानीज ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ में द्वीप के नेताओं से मिलेंगे।

क्षेत्र के समक्ष मौजूद प्रमुख खतरे ‘जलवायु परिवर्तन’ से निपटना

-प्रशांत क्षेत्र के नेताओं का तर्क है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के चलते जलवायु परिवर्तन की समस्या को संबोधित करने की दिशा में बहुत कम प्रयास हो रहे हैं, जो इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

प्रशांत देशों के नेता दशकों से इस बात को मान्यता देने का आह्वान कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन उनके देशों के लिए युद्ध के समान खतरनाक है। 2007 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पहली बहस के दौरान ‘पैसिफिक आइलैंड्स फोरम’ के देशों ने तर्क दिया था कि द्वीप देशों के लिए एक गर्म ग्रह के प्रभाव ‘‘उन मुल्कों से कम गंभीर नहीं हैं, जिन्हें बंदूक और बम के खतरे का सामना करना पड़ रहा है।’’

इस साल जून में फिजी के रक्षा मंत्री इनिया सेरुइरातु ने एक क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में कहा था, “मशीन गन, लड़ाकू जेट, ग्रे जहाज और हरी बटालियन हमारी प्राथमिक सुरक्षा चिंता नहीं हैं। लहरें हमारी दहलीज से टकरा रही हैं, हवाएं हमारे घरों को तबाह कर रही हैं, यह दुश्मन हम पर कई दिशाओं से हमला कर रहा है।”

जलवायु परिषद की आज की रिपोर्ट प्रशांत क्षेत्र के नेताओं की इस बात का समर्थन करती है कि जलवायु परिवर्तन क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

अगर दुनिया पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने और सभी प्रशांत देशों के अस्तित्व की सुरक्षा सुनिश्चित करने का मौका चाहती है तो उसे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक आधा करना होगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च उत्सर्जन और विशाल अप्रयुक्त नवीकरणीय संसाधनों वाले अमीर देशों को 2030 तक कार्बन उत्सर्जन के स्तर को 2005 के स्तर के मुकाबले 75 फीसदी तक घटाने के लक्ष्य रखना चाहिए।

आशावाद और सतर्कता

-ऑस्ट्रेलिया की नयी जलवायु नीतियों को प्रशांत द्वीप के देश आशावाद और सतर्कता के मिश्रण के साथ देख रहे हैं।

अल्बनीज ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 फीसदी की कटौती करने का वादा किया है। हालांकि, यह लक्ष्य ऑस्ट्रेलिया को बाकी विकसित देशों के करीब लाता है, लेकिन उसे किसी भी तरह से उनके समकक्ष खड़ा नहीं करता है।

ज्यादातर अन्य विकसित देशों ने इस दशक में उत्सर्जन में कम से कम 50 फीसदी की कटौती करने का वादा किया है।

ऑस्ट्रेलिया की नयी सरकार 2024 में प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी करना चाहती है।

हालांकि, यह एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया यह नहीं मान सकता कि प्रशांत देशों के नेता खुद इसका समर्थन करेंगे।

प्रशांत देश चाहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया कोयले व गैस से आगे बढ़ने के लिए अधिक प्रयास करे और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों (अपरिहार्य नुकसान और क्षति सहित) से निपटने में द्वीप देशों की मदद करने की खातिर नए वित्त के लिए प्रतिबद्धता जताए।

अल्बनीज के पास अगले हफ्ते सुवा में प्रशांत क्षेत्र की चिंताओं को सुनने का मौका होगा। यह एक लंबी बातचीत की शुरुआत होगी।

अगर ऑस्ट्रेलिया सरकार ध्यान से सुनती है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सार्थक कार्रवाई करती है तो इससे प्रशांत क्षेत्र का पसंदीदा सुरक्षा भागीदार बनने की उसकी दावेदारी मजबूत होगी।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Associated Press (AP)

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