डब्ल्यूएचओ ने मानव जीन एडिटिंग अनुसंधान का वैश्विक डेटाबेस तैयार करने की अपील की

लंदन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मानव ‘जीनोम एडिटिंग’ पर नयी सिफारिशें करते हुए एक वैश्विक रजिस्ट्री के लिए अपील की है, ताकि आनुवंशिकी में किये जाने वाले किसी भी छेड़छाड़ का पता लगाया जा सके।

डब्ल्यूएचओ ने अनैतिक एवं असुरक्षित अनुसंधान से जुड़े मुद्दों को सामने लाने के लिए एक तंत्र स्थापित करने का भी प्रस्ताव किया है।

‘जीनोम एडिटिंग’ प्रौद्योगिकियों का एक समूह है, जो वैज्ञानिकों को किसी जीव के डीएनए में बदलाव करने में सहायता करता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने चीनी वैज्ञानिक हे जैनकुई के इस नाटकीय ऐलान के बाद 2018 के अंत में एक विशेषज्ञ समूह गठित किया था कि उन्होंने विश्व के पहले ‘जीन एडिटेड’ (आनुवांशिकी में बदलाव) बच्चे को सृजित किया है।

डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञ समूह ने सोमवार को अपनी दो रिपोर्ट में कहा कि मानव जीनोम एडिटिंग से जुडे सारे अध्ययनों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। हालांकि, समूह ने यह भी जिक्र किया कि इससे सिद्धांतों से भटके हुए या नैतिकता का पालन नहीं करने वाले वैज्ञानिकों को नहीं रोका जा सकता।

समूह ने कहा कि ‘स्टेम सेल’ अनुसंधान के क्षेत्र में अनैतिक उद्यमियों और क्लीनिकों ने जानबूझ कर क्लीनिकल परीक्षण रजिस्ट्री का दुरूपयोग किया है।

समूह ने डब्ल्यूएचओ से यह सुनिश्चित करने की अपील की है कि सभी आनुवंशिकी संपादन अनुसंधानों की समीक्षा की जाए और एक नैतिकता समिति द्वारा उसे मंजूरी दी जाए।

जब चीनी वैज्ञानिक ने यह घोषणा की थी उन्होंने जुड़वां शिशु के डीएनए में बदलाव किया है ताकि वे एचआईवी से संक्रमित नहीं हो। तब उन्होंने कहा था कि जिस विश्वविद्यालय में वह काम करते हैं वह इस बात से अवगत नहीं था और उसने अपनी ओर से इस कार्य के लिए धन जुटाया था। बाद में उन्हें अवैध मेडिकल आचरण के लिए तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी।

समिति में शामिल एक विशेषज्ञ एवं फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के रॉबिन लोवेल बैज ने रूस, यूक्रेन और तुर्की की ऐसी कई घटनाओं का जिक्र किया है, जिनमें विवादित आनुवंशिकी संपादन के प्रयोग की योजना बनाई जा रही है।

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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