जोधपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय के वकीलों ने यहां कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह का शीर्ष अदालत के अधिवक्ताओं की उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के तौर पर पदोन्नति पर विचार का प्रस्ताव हाई कोर्ट के कॉलेजियम की स्वायत्तता के लिये हानिकारक और इन अदालतों में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के लिये अपमानजनक है।
प्रस्ताव पर आपत्ति व्यक्त करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ (आरएचसीएए) ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण को पत्र लिखकर इस पर विचार नहीं करने का अनुरोध किया है क्योंकि इससे अधिवक्ताओं के बीच उन अदालतों को लेकर भेदभाव होगा जहां वे वकालत करते हैं।
एससीबीए अध्यक्ष ने 31 मई को प्रधान न्यायाधीश रमण को पत्र लिखा था।
सिंह ने रविवार को एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि प्रस्ताव के पीछे उनका सीमित उद्देश्य उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे अधिवक्ताओं की उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के तौर पर पदोन्नति करने के लिये दबाव बनाना था। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ काफी समय से लंबित उच्चतम न्यायालय के वकीलों की मांग को उठा रहे थे।
सीजेआई को लिखे अपने पत्र में प्रस्ताव पर आपत्ति व्यक्त करते हुए आरएचसीएए अध्यक्ष नाथू सिंह राठौर ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधित उच्च न्यायालयों का विशिष्ट विशेषाधिकार है।
राठौर ने लिखा, “यह प्रस्ताव न सिर्फ इस विशेषाधिकार और उच्च न्यायालयों की स्वायत्तता में दखल देता है बल्कि देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में वकालत कर रहे वकीलों की प्रतिभा व क्षमता पर भी सवाल उठाता है।”
उन्होंने कहा कि राजस्थान की भूमि भले ही शुष्क हो लेकिन यहां प्रतिभाशाली व मेधावी वकीलों का कोई सूखा नहीं है।
क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
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