न्यायालय ने पटना कलक्ट्रेट इमारत परिसर को ढहाए जाने का मार्ग प्रशस्त किया

नयी दिल्ली ,उच्चतम न्यायालय ने 18वीं शताब्दी के पटना कलेक्ट्रेट परिसर को ढहाए जाने का रास्ता शुक्रवार को साफ करते हुए कहा कि औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाई गई प्रत्येक इमारत को संरक्षित करने की आवश्यकता नहीं है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि अगर यह इमारत वह होती जहां स्वतंत्रता सेनानी रहे होते तो यह धरोहर इमारत होती लेकिन इसे तो नीदरलैंड के लोग अफीम के भंडारण के लिए इस्तेमाल करते थे।

पीठ ने भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (आईएनटीएसीएच) की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दी।

इसने कहा,‘‘ हमारे पास औपनिवेशिक काल की कई इमारतें है। कुछ अंग्रेजों के जमाने की हैं, कुछ नीदरलैंड युग की हैं और केरल में कुछ फ्रांस के शासन के दौरान की हैं। कुछ ऐसी इमारतें हो सकती हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व हो लेकिन सभी इमारतों का ऐसा महत्व नहीं हो सकता।’’

आईएनटीएसीएच के ओर से पेश वकील रोशन संथालिया ने कहा कि इमारत उतनी असुरक्षित नहीं है जितनी राज्य सरकार बता रही है और इसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।

वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि इमारत जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है और मानव जीवन के लिए खतरा है।

उन्होंने अपनी दलील में कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी कहा है कि इसका धरोहर के रूप में कोई महत्व नहीं है और बिहार शहरी कला एवं विरासत आयोग ने 2020 में भवन को गिराने की मंजूरी दे दी थी।

पीठ ने याचिका खारिज करते हुए इसे ढहाए जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia commons

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