न्याय प्रणाली में एआई के इस्तेमाल के तरीकों पर ध्यान देने की जरूरत

डबलिन, कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई) हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक ऐसा हिस्सा बन गई है, जिसके इस्तेमाल से हम बच नहीं सकते। सोशल मीडिया की दुनिया में जहां चैट-जीपीटी और एल्गॉरिद्म के इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाता है, वहीं एक ऐसा क्षेत्र भी है, जहां एआई गहरा प्रभाव डालने की क्षमता रखता है और यह क्षेत्र है न्याय क्षेत्र।  न्यायिक सुनवाई के दौरान एआई द्वारा अपराध का निर्धारण भले ही दूर की कौड़ी नजर आता है, लेकिन यह एक ऐसा विचार है, जिस पर अब गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है।

             निष्पक्ष सुनवाई करने की एआई की क्षमता पर हालांकि लगातार सवाल उठते रहे हैं। यही कारण है कि यूरोपीय संघ (ईयू) ने एक कानून लागू किया है, जो यह तय करता है कि आपराधिक कानून में एआई का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है और कैसे नहीं। उत्तर अमेरिका में निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने वाले एल्गॉरिद्म का पहले से ही इस्तेमाल हो रहा है। इनमें कंपास, पब्लिक सेफ्टी असेसमेंट (पीएसए) और प्री-ट्रायल रिस्क असेसमेंट इंस्ट्रूमेंट (पीटीआरए) शामिल हैं।

             नवंबर 2022 में ब्रिटिश संसद के उच्च सदन ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में एआई आधारित प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल का विचार दिया गया था। यह देखना दिलचस्प होगा कि एआई कैसे लंबी अवधि में न्याय व्यवस्था पर दवाब में कमी ला सकता है, जिसमें अदालती कार्यवाही की लागत घटाना और मामूली अपराधों में न्यायिक कार्यवाही का संचालन संभालना शामिल है।  एआई प्रणालियां मनोवैज्ञानिक भ्रांतियों को दूर रखने में मददगार साबित हो सकती हैं और कठोर नियंत्रण के अधीन हो सकती हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये प्रणालियां सुनवाई में न्यायाधीशों से कहीं अधिक निष्पक्ष साबित हो सकती हैं।

             इसके अलावा, एल्गॉरिद्म पुराने फैसलों का उदाहरण देने में वकीलों की मदद के लिए डेटा उपलब्ध करा सकते हैं, न्यायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के तरीके सुझा सकते हैं और निष्कर्ष निकालने में न्यायाधीशों की सहायता कर सकते हैं। दूसरी ओर, एल्गॉरिद्म द्वारा मामलों में बार-बार एक ही तरह का फैसला सुनाए जाने के कारण कानून की व्याख्या में रचनात्मकता की कमी की समस्या भी सामने आ सकती है, जिससे न्यायिक प्रणाली का विकास धीमा पड़ने या बाधित होने की आशंका है।

             सुनवाई में इस्तेमाल के लिए बनाई गई एआई प्रणालियों का मानवाधिकारों के सम्मान सहित अन्य न्यायिक मानकों के अनुरूप होना भी बेहद जरूरी है। यही नहीं, इन प्रणालियों के मार्ग-दर्शन के लिए हमें कुशल तंत्र की भी जरूरत है, जिसमें मानव न्यायाधीश और समितियां शामिल हों। एआई को नियंत्रित करना और उसके अधिकार निर्धारित करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। इस प्रक्रिया में कानून के विभिन्न पहलू-जैसे डेटा संरक्षण कानून, उपभोक्ता संरक्षण कानून और प्रतिस्पर्धा कानून के साथ-साथ श्रम कानून, आदि शामिल हैं। मिसाल के तौर पर, एआई द्वारा लिए गए निर्णय सीधे ‘जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्यूलेशन’ (जीडीपीआर) के अधीन होते हैं, जिसके तहत निष्पक्षता और जवाबदेही मूलभूल आवश्यकताएं हैं।

             सामाजिक बदलाव की ओर :  – न्याय को चूंकि एक मानव विज्ञान माना जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि एआई प्रणालियां न्यायधीशों और वकीलों की जगह लेने के बजाय उनकी मदद करें। जैसा कि आधुनिक लोकतंत्रों में देखा जाता है, जहां न्याय व्यवस्था में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है। इस तरह की व्यवस्थाओं में कानून बनाने की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से विधायिका, जबकि उसे लागू करने का दायित्व न्यायपालिका पर होता है। ऐसा नागरिक अधिकारों की रक्षा और उत्पीड़न की रोकथाम के लिए किया जाता है।  मुकदमों में फैसले के लिए एआई का इस्तेमाल मानवीय कानूनों और निर्णय लेने की प्रक्रिया को चुनौती देकर विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को हिला सकता है। यह हमारे मूल्यों में भी बदलाव ला सकता है और चूंकि, मानवीय कार्यों के विश्लेषण, पूर्वानुमान और उसे प्रभावित करने के लिए सभी तरह के व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल किया जा सकता है, इसलिए एआई का उपयोग सही और गलत के बीच अंतर को फिर से परिभाषित कर सकता है, संभवत: बारीकियों पर ध्यान दिए बिना।

             न्याय देने के लिए एल्गॉरिद्म के विकास से यह संदेश भी जाएगा कि हम एआई को मानव न्यायाधीश से अधिक सक्षम मानते हैं। यही नहीं, इससे एक दिन हम आईजैक असीमोव की मशहूर उपन्यास शृंखला ‘द रोबोट साइकिल’ में दर्शाए गए ऐसे समाज में तब्दील हो सकते हैं, जहां रोबोट में मनुष्य जितना बौद्धिक कौशल होगा और वे समाज के विभिन्न क्षेत्रों को नियंत्रित करने लगेंगे।

             मनुष्य द्वारा लिए गए फैसले तार्किक लिहाज से हमेशा पूरी तरह से सही या अचूक नहीं हो सकते। लेकिन, गलतियां मानव स्वभाव का एक अहम हिस्सा हैं। ये हमें ठोस समाधान निकालने और अपनी कार्य क्षमता में सुधार लाने में सक्षम बनाती हैं। अगर हम रोजमर्रा की जिंदगी में एआई का इस्तेमाल बढ़ाना चाहते हैं, तो समझदारी इसी में होगी कि इसे लागू करने के लिए मानव तर्क शक्ति का प्रयोग जारी रखा जाए।

क्रेडिट : प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Wikimedia common

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