पराली को लेकर किसी भी तथ्यात्मक आधार के बिना हल्ला मचाया जा रहा: न्यायालय

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसानों द्वारा पराली जलाए जाने पर बगैर किसी वैज्ञानिक और तथ्यात्मक आधार के ही ‘हल्ला‘ मचाया जा रहा है।

न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के वायु प्रदूषण में पराली जलाए जाने का योगदान मात्र 10 प्रतिशत है। न्यायालय ने केंद्र को प्रदूषण से निपटने के लिए मंगलवार को एक आपात बैठक बुलाने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने निर्माण, उद्योग, परिवहन, ऊर्जा एवं वाहनों की आवाजाही को प्रदूषण के बड़े कारण बताया और केंद्र से कहा कि वह अनावश्यक गतिविधियों को रोकने और कर्मियों द्वारा घर से काम करने जैसे कदम उठाए।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम द्वारा कुछ निर्णय किए गए हैं, लेकिन इसने सटीक तरीके से यह नहीं बताया है कि वे वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाने जा रहे हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इसके मद्देनजर हम भारत सरकार को निर्देश देते हैं कि वह कल एक आपात बैठक बुलाए और हमने जिन क्षेत्रों की बात की है, उन पर चर्चा करे तथा यह देखे कि वह वायु प्रदूषण को प्रभावी तरीके से काबू करने के लिए क्या आदेश पारित कर सकती है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक पराली जलाए जाने की बात है, तो शपथपत्र व्यापक रूप से कहते हैं कि दो महीनों को छोड़ दिया जाए, तो उसका योगदान बहुत अधिक नहीं है। बहरहाल, इस समय हरियाणा और पंजाब में पराली जलाए जाने की घटनाएं बड़ी मात्रा में हो रही हैं।’’

पीठ ने केंद्र और एनसीआर राज्यों को कर्मियों से घर से काम कराने की समीक्षा करने को कहा।

केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को उन कई कदमों की जानकारी दी, जिन पर केंद्र सरकार और दिल्ली, पंजाब एवं हरियाणा के सचिवों के साथ हुई आपात बैठक में विचार-विमर्श किया गया था।

मेहता ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पराली जलाया जाना प्रदूषण का बड़ा कारण नहीं है और वायु प्रदूषण में इसका योगदान मात्र 10 प्रतिशत है।’’

पीठ ने उनके इस प्रतिवेदन पर कहा, ‘‘क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है? इस हल्ले का कोई वैज्ञानिक या तथ्यात्मक आधार नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने केंद्र के शपथपत्र का जिक्र करते हुए कहा कि 75 प्रतिशत वायु प्रदूषण तीन कारणों-उद्योग, धूल और परिवहन के कारण है। पीठ ने कहा, ‘‘इससे पहले (शनिवार को) हुई सुनवाई में हमने कहा था कि पराली जलाया जाना मुख्य कारण नहीं है, शहर संबंधी कारक भी इसके पीछे है, इसलिए यदि आप उनके संबंध में कदम उठाते हैं, तो स्थिति में सुधार होगा।’’

उसने कहा, ‘‘अब असलियत सामने आ गई है कि चार्ट के अनुसार प्रदूषण में किसानों द्वारा पराली जलाए जाने का योगदान मात्र चार प्रतिशत है। यानी हम ऐसी चीज को निशाना बना रहे हैं, जिसका कोई महत्व ही नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने इससे पहले हुई आपात बैठक पर भी नाखुशी जताई और कहा, ‘‘हमें एक कार्यकारी आपात बैठक इस प्रकार बुलाए जाने की अपेक्षा नहीं थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें एजेंडा तय करना पड़ा है।’’

उसने कहा, ‘‘गठित की गई समिति से पूछिए और फैसला कीजिए कि कल शाम तक कार्य योजना लागू कैसे करनी है।’’

इससे पहले, याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने प्रतिवेदन दिया कि वह कुछ सुझाव देना चाहते हैं और कहा कि निर्माण को प्रतिबंधित करने के बजाय उन्हें विनियमित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कड़े कदम नहीं उठाना चाहती।

सॉलिसिटर जनरल ने उनका विरोध करते हुए कहा, ‘‘मेरे मित्र का एजेंडा अलग है।’’

इस पर शीर्ष अदालत ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘आप लड़ना चाहते हैं या दलीलें पेश करना चाहते हैं। हमारा चुनाव और राजनीति से कोई लेना देना नहीं है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमने पिछली बार भी स्पष्ट किया था कि राजनीति से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। हम केवल प्रदूषण कम करना चाहते हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम संकट की स्थिति में हैं।’’

क्रेडिट : पेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया
फोटो क्रेडिट : Getty Images

%d bloggers like this: